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________________ विपिन पञ्चक्खपि तहिं, अक्कोसे देइ भूवइणो ॥ ५५॥ तत्तो इलामुएणवि, नार्य निवइस्स दुहिययत्तं । एसोवि नडीलुद्धो, तापकरणम् ॥८८॥ नूण मह मच्चुमीहेइ ॥५६ ।। तइया य समीवत्ये, धणिणो कस्सवि गिहम्मि स महप्पा । वंसग्गत्यो पिक्खइ, भिक्खट्ट H मुवागए मुणिणो ॥ ५७ ॥ तो गाढायरपुवं, मणुनाहारगाहणकरण । अन्भस्थिति तहि, एरिसरूवाहि रमणो. हिं॥५८ ॥ उन्नयपीणपओहर-मंडलघोलंततारहाराहि । भत्तिवमुभवसंभम-रहसियंसुयपयडमालाहि ॥ ५९॥ रण. शणिरकडयकंकण-नेउरकिकिणिरवेण गुहिरेण । माणसगुहापमुक्तं, जग्गावतीहि मयणहरि ॥ ६०॥ तईसणेऽवि तेसि, आहारविमुद्धिबद्धदिट्टीण । जियइंदियपसराणं, न चलइ चित्तं मणागपि ॥ ६१ ॥ तं दहमिलापुत्तो, चिंतइ संवेगरंग. रससित्तो । एयम्मि जीवलोए, अहह ! महामोहमाहप्पं ।। ६२ । केरिसकुळम्मि जाओ, अहं समिद्धमि उत्तमगुणम्मि । ईसरकबाहिवि कित्तियाहि अभत्थिओ तइया ॥६३॥ रत्तो पुण एयाए, नडीइ जस्संगवंछिएणावि । इत्थवि जाओ || हा घिद्धो, ठाणं एरिस अगत्थाणं ॥ ६४ ॥ पावो अकजनिरओ, कह देसिस्सामि नियमुहंपि अहं । अन्नाणत्तेण तया, न य गणिओ जेण जणओऽवि ॥ ६५ ॥ सुणियं न मित्तभणियं, न चिंतियं अप्पणो य लहुयत्तं । न कुलक्कमोऽवि गणिओ, द न लज्जियं नियगुणाणपि ॥६६॥ नीरस्स पवाहेण व, मए तया नीयगामिणा ताव । विहियं अकज्जमेयं, मज्झवि अहिओ |* HI इमो निवई ॥६७॥ परिणीय अच्छरोवमरूवाओ, बहयरायकनाओ।सिच्छाइ विसयसुक्खं, भुजंतोऽवि हुन जं तितो ॥ ६८ ॥ एयाइ आँछप्पाए, नडीइ रनो न लज्जइ इयाणि । अवजसरज्जभंसाइ, जायए जेण तत्कालं ॥ ६९ ॥ | 3८८॥ | सव्वत्थवि अक्खलियं, वित्थरइ महीइ मोहनिवळलियं । परमपयबद्धमइणो, मुत्तण इमे महामुणिणो ॥ ७० ।। सिंगार | मान%-1SECRECOR
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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