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________________ करम near ॥ १७७ ।। चउरंगुलो मणी पुण, तस्सद्धं चेव होइ विच्छिन्नो। चउरंगुलप्पमाणा, सुवन्नवरकागिणी नेया ॥१७८ ॥ एवं सो दिसिजत्तं, काऊण समग्गनरवरसमेओ। चउदसरयणाहिवई, संपत्तो हथिणपुरम्मि ॥१७९।। अह तस्स चक्कवइणो, बारसवासाइँ रजअभिसेयं । बत्तीसनिवसहस्सा, जक्खा देवा य कुव्वति ॥१८०॥ सव्वंपि चक्किलच्छी-विच्छई पाविऊण लीलाए । पालेइ सिरिमहपउमो, चक्किपयं सो नवमचक्की ॥१८१॥ अह सो सिरिपउमुत्तर-रायरिसी दुक्करं तवं काउं । कम्मक्खयंमि केवल-नाणं पाविय गओ सिद्धिं ।। १८२ ॥ विण्हुकुमारो वि मुणी, दुक्करतवसोवलद्धबहुलद्धी । बहुपाडिहेरनिलओ, विक्खाओ तिहुयणे जाओ ।।१८३॥ मेरुव्य होइ उच्चो, वचइ गयणमि पक्खिनाहु व्व । मयणु व अणंगतं, सुरु व्व धरई य बहुरूवो ॥ १८४ ॥ जलणो इव तेइल्लो, पडाउ इक्काउ जणइ पडकोडिं । घडयाउ घडसहस्से, करेइ गयणं व सव्वगओ ॥ १८५ ॥ विविहाभिग्गहनिरओ, एगागी निम्ममो निरीहप्पा । बारसभेयं पि तवं, तवेइ सो गिरिगुहाईसु ॥१८६॥ अह सिरिसुन्वयसूरी, पत्तो हथिणपुरंमि विहरतो । वासारत्तं च ठिओ, उज्जाणे बहुमुणिसमेओ ॥ १८७ ।। अन्नदिणे सो नमुई, पिक्खिय तं चिल्लयं फुरियकोवो । नियवयरसाहणहा, चक्कि मग्गेइ पुन्ववरं ॥१८८॥ देव! मह सत्तदियहे, नियरजं देसु सन्बहावि परं । तची न हु कायन्या, आह नियोकिं कुणसि |* विप्प ! ॥ १८९ ॥ सो भणइ देव ! जन्नो, विहियचो वेयभणियविहिपुव्वं । रमा वुत्तं एवं, होउ तो ठापिओ रज्जे ॥ १९० ॥ राया सयमंतेउर-मज्झे पविसेइ परिचइ य तत्तीं । नयराउ तओ नमुई नीहरिओ जनकरणत्यं ॥१९१ ॥ गंतूण जमवाद, पत्तो कवडेण दिक्खिओ हो । रज्जविओ ति लोओ, तो तं वद्धावि एइ ।। १९२ माहणतवस्सि 354555% REC%ASARALA CHECE EGE
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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