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________________ मकरणम् धर्मविधि ॥७६॥ अईसणं पत्तो ॥७४॥ तो पारिय उस्सग्गो, निसं सुभद्दा गमेइ संतुहा । उवलद्धवंछियत्थो, को नाम न तोसमुबहइ ॥७५॥ अह जायम्मि पभाए, जा उग्घाडेति पुरिदुवाराई । ता उग्धडंनि न कह वि, अउन्नयाण निहीउ व्व १७६॥ अहमहमिगासमागय-बलवंतनरेहिं चालियाइम्पि । तद्दारकवाडाई, न चलंति जिणिंदभणिय व ॥ ७७ ॥ अह परचक्कनरेहि व, भज्ज ताणिवि खरप्पहारेहिं । वज्जमया इव भज्जति, नेव निउणाइ वि मइए ॥ ७८ ॥ अह दारपालएहिः तं गंतुं अक्खियं नरिंदस्स । तत्तो जियसत्तुनिवो, पत्तो भयकोउगाउलिओ. ॥ ७९ ॥ दुपयचउप्पयवग्गं. गंतुमसकं विणा दुवारेणं । पिंडीभूयं निवई, नियई नइपूरखलियं व ।। ८० ॥ नियठाणगमणरसियं, गंतुं चउमुवि दुधारहट्टसुं । पंथियजणं च पिक्खेइ वलियं अइकूडदम्म व ॥ ८१॥ छुहतन्हाउलचउपयमहंतसद्देण सा पुरी तइया । बद्धमुहदारा चिहुधाहवइ पिक्खउव निवं ॥ ८२ ॥ अह तं पिक्खिय भूवो, भणइ इमं देवविलसिय किपि । अन्नह कह चउरोवि हु बद्धाई पुरीद्वाराई ।। ८३ ॥ तो मुत्तूण उवाए, अण्णे राया पहाणजणसहिओ । धृवकडुच्छयहत्थो कयण्डाणो विण्णवइ एवं ।। ८४ ॥ देवस्स दाणवस्स व, जस्सऽवरद्धं अयाणमाणेहिं । अम्हेहि किंपि तं सो खमेउ जंपेउ वा पयडं ॥ ८५ ॥ इत्थंतरंभि सहसा, गयणत्यो सो सुरो समाइसइ । जोडियकरकमलाणं, जणाण धम्म · सुहगुरुव्व ।। ८६ ।। भो ! भो ! निमुणंतु जणा!, मम वयणं अवहिया व हियएण । जा कावि इह पुरीए, महासइत्तं समुबहइ ।। ८७ ।। सा चालणोनिवेसियजलस्स चलुएणं तिन्नि वाराओ । पुरिदारकवाडाई, अच्छोड उ उग्घडंति जओ ॥ ८८ ॥ इय दिव्ववयणअमयं पा सवगंजलोहि निवतिमुहा । नियभगिणोभज्जाई इथिजणं आहवावंति ॥ ८९ ॥ तत्तो निवइपुरोहियअमच्चसत्थाहसिठिसमुहाणं । लद्भग्धं व कयाण ॥७६ ॥
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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