SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SARGAOREOGRABAR हो ही दुरहिगम्मः।। ५८ ॥ हसिव्व विमुद्धोभय पक्खा एसा वि कुणइ जइ.एवं । ता एयाए उवरि, पज्जत्त मम सिणेहेण | ॥ ५९ इय चितिय तीए सह, नेहं सो चयइ पिसुणसंग व । तं सव्वं नाऊणं, चितइ हियए सुभदा वि ।। ६० ॥ ज वसमविसयभोग-पराण संसारमावसंताणं । संपज्जात कलंका, तं न हु अच्छेरयं किंपि ॥ ५१॥ घरवासवावडाए, विसयपसत्ताइ जा मइ कलंको । संजाओ तं महइ माणसौम थेवं पि हुन दुक्खं ॥६२॥ ज पुणमयंककरानम्मळस्स जणसासणस्स मालिन्नं। संजायं मह कज्जे, तंदुमइ नणु दुसल्लं व ॥६३।। ता जाव मए कह वि हुन पवयणमालिन्नमयमवणायं । ता मह हिययस्स घिन हाइ जावंतकाल वि ।। ५४ ।। इय चितिउं सुभदा, संयझासमपाम्म सोगहपोडमाए । काऊण परमपूर्य, संथुणए नवनवथु हि ।। ६५ ।। ता गिण्हइ पइन्न, जाव न जिणसासणस्स मालिनं । अवणायाम ताऽ, काउस्सग न पारमि ॥६६॥ जा जिणसासणभत्ता, देवो सा हाउ मज्झ पच्चक्खो । अन्नह मए इमं चिय, पाडवनं अणसगं इण्ड ॥६७।। इय जाव खणं इकं, काउस्सग्गेण चिइ सुभदा । ता तत्थ समुज्जाओ, जाओ रांवउग्गमाउ व्च ॥ ६८ ॥ अब सा पिक्खइ पुरओ, देवं वरहारकुंडलाईहिं । सव्वंगभूसियतणु, पत्तं मुत्तं व धम्मानहिं ॥ ६९ ॥ स भणइ भद्दे ! जंपस, सरिआ कजेण जैग तुमएऽहं । तदछुण सुभद्दा, तुहात पइ पयंपेइ ।। ७० ॥ पवयणभचा तुम बहु, अवणेसु जिणसासणावबायमिन । पभणइ सुरो सुभद्दे ! , इत्थत्थे कुणम् मा खेयं ।। ७१ ॥ नयरीइ दुवाराई; चउरो वि अहं १मायसमयम्मि । दक्किस्सामि न को वि हु, उग्घाढिस्सइ तुम मुत्तुं ।। ७२ ।। गयणत्यो य भणिस्सं, जा काबि महासइ इह पुरीए । सा चालखित्तजलच्छदाहि उग्घाडउ दुवारे ।। ७३ ॥ उग्याडिस्सइ वाई, तुर्म विमुत्तुं न कावि इह अना । इय भणिऊणं तियसो, सहसा REAC-ARMA-- -
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy