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________________ प्रकरणम् परिधि ॥६७॥ 5SLCSHAAUCREEx.rte बच्छे! तुह एरिसम्मि अणुरागो । जं निद्धणजयारे, रत्ता मुत्तण सत्याहं ॥१०५॥ जपेड़ देवदत्ता; अंबे ! मा भणम् इह पयाणत्तं । जम्हा मह अणुरागो, गुणनिवहे मूलदेवस्स ॥ १०६ ॥ अक्का भणेइ अयलो, गुणहीणो केण मूलदेवाओ? | नाया तुज्य परिख त्ति, जंपिउं पढइ तप्पुरओ ॥ १०७ ॥ सहयारभरियदेसे, रुप्पसि धत्तूरयं तुम वच्छे । डहरकफुल्लनाया जयपति णुरत्ता, भुजंती तप्फलं मुणसि ॥ १०८ ।। वुत्तं, च देवदत्ताइ. माय ! मा एवमुल्लव सु जेण । को मलदेवसरिस, गुणनिवहं वहइ देवो वि ॥१०९॥ अहवा महेसरो वि हु, संतेसु वि विविहपुप्फनियरेसु । धत्तूरएण इक्कण, तसए न उण अन्नण॥११०।। अक्का जैपइ जइ तुह, एस गहो दोवि ता परिक्खामि । उल्लवह देवदत्ता, जुत्त वुन तए माय ! ।। १११ ॥ अह तप्परिक्खहेडं, अक्का पेसेइ अयलपासम्मि । उच्छृण कए दासिं, सा साहइ तस्स गंतूणं ।। ११२ ॥ सो तक्खणेण उरण, भारए गिन्हिऊण मुल्लेण । भरिऊण सगडमेगं, पट्टावइ देवदत्ताए ॥११३ ॥ तं गिहपत्तं दह, तुट्टा अका भणे हे पुत्ति !। पिक्खसुदाणाइसयं, अयलं अयलस्स नियपइणो ॥११४ ॥ पडिभणइ देवदत्ता. किमहं महिमी कोणुया अहवा । जेण समृल. सडालो, उच्छ्र पुंजु त्ति पट्टविओ ॥ ११५ ॥ अह मूलदेवपासे, अक्का उच्चण पेसए दासि । तब्भणिो सोवि लह, जय मुत्तण उट्टेइ ॥११६॥ जयज्जियदव्वेणं, परिक्खिउं इक्खुलटिओ सरसा । पण सत्त गिन्हि उणं, मूलगे अवणए तेति ॥११॥ । अह तच्छिऊण छुरियाइ, छदिऊणं च कठिणगठिओ । रसकुडाणि व खडाई. कुणड दोअगुलमियाई ॥ ११८ ॥ तो चारजाएण, सम्मीसिय रसविसेसजणगेण । घणसारेणं परिमल-पारेणं देड अडिवासं ॥१९॥ अकरफरिप गहिउ, खंडाई पोइऊण मूळामु । अहिणवसरावपुडए, खिविउं पेसेइ दासिकरे ॥१२०|| अह ता. देवदत्ता, पिक्खिय दंसेइ जपइ य अकं ॥६७॥
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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