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धर्मविधि ॥६६॥
या प्रकरणम्
तईसणाउ मह होउ, नयणनिम्माणसाफल्लं॥ ७३ ॥ अह निबंधे विहिए, गुडिया वयणाउ तेण अवणीया । मु हरिमजियतियस-संपर्य सियं तीइ रूवं ।। ७४॥ नियवइयरोवि सव्वो, कहिओ मूलाउ मूलदेवेण । सम्भावनेहभरिए, सुयणा गाविति न हु किंपि ॥ ७५ ।। अह तस्स रूवसंपय-ममेयलाइन्नपुन्नसव्वंग अवलोइऊण गणिया, सहरिसमेवं पयं पेइ ॥ ७६॥ तुज्झ विणा मह हिययं, न रंजियं नाह ! केणवि नरेण । ता सव्वहावि इत्ता, तुमंमि मे नेहसव्वस्सं ॥ ७७ ॥ तह कहवि संनिविट्ठा, सारयचंदुज्जला गुणा तुम्ह । मह हियए सामि ! जहा, न पवेस दिति अन्नस्स ॥ ७८ ॥ ता इत्तो पसिऊणं, नाह! तए पइदिणं पि मह भुवणे। आगंतव्चमवस्सं, तो भणियं मूलदेवेण ।। ७९ ॥ सुंदरि ! गुणाणुरागिणि ! निडणचंगे विदेसियंमि जणे । अम्हारिसंमिनेहो, न रेहए कहवि तुम्हाण ॥ ८०॥ पारणं सव्वस्सवि, सकज्जवसओ धुवं हवइ नेहो । वेसाण विसेसेणं, सुकई इव अत्यतुट्ठाण ॥ ८१ ॥ उरसिजमिसेण जाओ, पिठुवरि पुट्टले वि बंधति । वेसाण ताण लोह, कित्तियमित्तं पर्यपेमि ॥ ८२ ॥ अहसा जपइ हसिउँ, लोभो अत्थम्मि ताह अम्हाण । जा गुणरयणनिहाणं, न लब्भए को वि तुह सरिसो ॥ ८३ ॥ जे तुज्झ गुणा बहुनेह-पयडणा सयललोयअब्भहिया । ते अपियघुटसरिसा, बहुमुलण वि न लब्भंति ८४ ॥ इय तं पडिवज्जाविय, सव्वंग कुणइ तस्स अभंगं । तो न्हाऊणं दुन्निवि, जिमंति एग मि थालम्मि ॥ ८५ ॥ निच्चंपिनेहसारं, पंचपयारंपि तत्थ विसयमुह । तीए सह सो भुंजइ, सग्गे सक्को इव सचीए ॥ ८६ ।। अह तत्थ वि जूएणं, रममाणो पणिओ स गणियाए । पहु ! जूयकीलमेयं, मन्जसवक्किं व मा कुणसु ८७ ॥ इच्चाई वयणेहिं, तीए भणिओ वि मुंचइ न जूयं । पत्तं महागहो इव, विविहहिंवि मंतवाएहिं ॥८८ ॥ अन्नदिणे निवपासे, पिक्खणगकएण