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द्र करिघडाडोवविहडणपयंडो । बहुसमरपत्तकित्ती, मह खग्गो किन लज्जेह ॥ १४५ ॥ ता इक्क चिय एय, हणेमि इय |
जाव देइ नो घायं । ता चिरगहियाभिग्गह-मणुसुमरइ झत्ति स महप्पा ॥ १४६ ॥ तत्तो नियत्तिऊगं, सत्तट्ट पयाइँ जाव का पहरेइ । ता उवरि पीढिखलणे, खग्गेण खडक्कियं तत्थ ॥ १४७ ॥ अह भाउज्जायादेह-भारपोडिज्जमाणवाहाए । विह. डतनिविडनिदा-भराइ भगिणीइ तं सुच्चा ।। १४८ ॥ चिरकालं जीवउ मज्झ, भाउगो वंकचूलिनामो सो। सज्जसवसप्प. बुद्धाइ, तीइ इय जंपियं सहसा ॥ १४९ ॥ आयन्निऊण एय, विचिंतियं वंकचूलिणा तत्तो । अहह कह सा एसा, मम भगिणी पुष्फचूल त्ति ॥ १५०|| जीए अञ्चंतं गाढ-नेहवसओ ममं सरंतीए । मुहिसयणजणणिजणगा-इणो वि पु परिचत्ता ॥ १५१ ॥ हा कहमेयमियाणि, दृणिऊण निययजीवियम्भहियं । अइगरुयपावकारी, जीवंतो ई सयमलज्जो ॥१५२ ॥ कत्थ व पसथतित्ये, गयस्स केण व तचोविसेसेण । हुता सुद्धी भइणी-विणास जणियाउ पावाउ (ग्रन्थानम्
२०००)॥ १५३॥ इय चिंतिऊण भइणीइ, कंठमासज्जमन्नुभरविहुरो। रोविउमारदो नियय-पावचिहाइ संळत्तो ४॥ १५४ ॥ कह कहवि पुप्फचूलाए, विम्हियखित्तचित्तपसराए । उववेसिऊण सिज्जाइ, वंकचूली इमं भणिओ ॥ १५५ ।।
बंधव ! विच्छायमुहो, निसाइ नीसेसपरियणविहीणो। तत्थ वि पच्छन्नु च्चिय, गिहे किमेवं पविट्ठो सि ॥१५६ ।। जम्हा तुह आगमणे, पडिभवणदुवारबद्धधवलधया। हल्लप्फलियजणाउल-मग्गा पल्ली इमा हुंता ॥ १५७ ॥ किं वा धीरो वि तुमं, सुरगिरिवरसारसत्तकलिओ वि । सहस चिय में अवलंबिऊण, एवं परुन्नो सि ॥१५८ ॥ अचंताणिसमुन्भवे कि, गाढावयानिवडणे विदरे परुन्नमन्नड, मुहरागो वि हुन ते भिन्नो ॥ १५९ ॥ तो तेण वीइ कहिओ, सवो परियण
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