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________________ सचमणसणं गहियं । ता वच्छ ! गच्छ गेहं, परलोयहिए पयट्टो हं ॥ २७१ ॥ तो विंदुसारराया, खामेउ सपरियणो मकरणम् । गिहं पत्तो । चिंतइ सुबंधुनामो, जइ अज्जवि चलइ चाणको ॥ २७२ ।। ता निकंदेइ मम, इय चिंतिय भणइ कवडओ निवई । तुह अणुमईइ सामिय !, करेमि चाणकपूयमहं ॥ २७३ ॥ होउ इमं ति अणुमए, गतुं संझाइ कुणइ तप्पूयं । उग्गाहियं 5 च धृवं, कारीसे खिवइ इंगालं । २७४ ॥ मायाइ पामऊण य, गओ स गेंहंमि तेण जलणेण । दज्झतो चाणक्को, इय चितंतो सहइ सम्मं ॥ २८५॥ देह असुइदुगंधं, भरियं मलमुत्तपित्तरुहिराण । रे जीव! इमस्सुवरि, पडिबंध मा तुम कु. णसु ॥ २७६॥ पुन्नं पावं च दुगं, बच्चइ जीवेण सह सया एयं | जं पुण इमं सरीरं, तं न चलइ कहवि ठाणाओ ॥२७७॥ तिरियत्तणमि बहुसो, पत्ताइ तुमे अणेगदुक्खाई । तो ताई सुमरंतो, सहरु इमं वेयणं जीव ! ॥२७८॥ नरयमि जीच! तुमए, ५ नाणादुक्खाइँ जाइँ सहियाई 1 इन्हि ताइँ सरंतो, अहियासमु वेयणं एयं ॥ २७९ इक्को जायइ जीवो, मरेइ इक्को भवंमि | तह भमइ । कम्माइ खवइ इक्को, इकु च्चिय पावए सिद्धिं ॥२८०॥ एगो मे सासओ अप्पा, नाणदसणसंजुओ। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा ।। २८१ ॥ संजोगमूला जीवेण, पत्ता दुक्खपरंपरा । तम्हा संजोगसंबंध, सव्वं तिविहेण वोसिरे ॥ २८२ ।। हिंसालियचोरिके, मेहुनपरिग्गहे य निसिभत्ते । पच्चक्खामि य संपइ, तिविहेणाहारपाणाणं ॥ २८३ ॥ छउमत्थो मृढमणो, कित्तियमित्तंपि संभाइ जीवो। जं च न सुमरामि अहं, मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ॥ २८४ ॥ जे मे जाणंति जिणा, अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । ते हं आलोएमी, उवडिओ सव्वभावेण ॥ २८५ ॥ जं जं मणेण बद्धं, D॥४६॥ जं जं वायाइ भासि पावं । कारण वि जं च कय, मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ।। २८६॥ अन्नं च मज्झ संपइ, जुत्तं अप्पहि.
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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