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मकरण
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दुक्काले ॥ २४० ॥ किं सो वि गिही भन्नइ, जो साहूणं अदिन्नदाणोवि । भुंजइ गेहंमि जो, नियउयरं भरइ काओ वि ॥ २४१ ।। इय सोउं चाणको, पणइ भयवं ! भवनवावडिओ। तुम्भेहि समुद्धरिओ, चोयणपोएण अहमिहि ॥ २४२ ॥ तो सुद्धसणिएणं, अहापवत्तेण भत्तपाणेण | कारिज्जह अणुदियह, अणुग्ग मज्झ गेहंमि ॥ २४३ ॥ खमियन्वं च असेसं, जमुवालंभेण खेइया तुम्भे । इय भणिउं चाणको, संपत्तो निययावासे ॥२४४ ।। अह चिंतिउं परत्तो, जइ को विहु। चिल्लयव्व अदिस्सो । सत्तुनरो देइ विसं, निवस्स ता सुंदरं न इमं ।। २४५ ।। किंच इमो पुव्वंपि हु, विसकन्नपभोगओ कहवि छट्टो । ता तह करेमि संपइ, विसाओ जह होइ नेव भयं ॥ २४६ ॥ इय चिंतिय चाणको, दावेई चंदगुत्तनरवइणो। सह आहारेण विसं, पइदिणमहियाहियकमेण ॥ ४७ ॥ इतो य धारिणीए, रन्नो देवीइ गम्भभावाओ । उप्पन्नो डोहलओ, सा चिंतइ एवमणुदियहं ॥ २४८ ॥ नाउ कयस्थाओ, ताओ महिलाउ जाउ सह पइणा। भुंजंति एगथाले, एगासणसन्निविट्ठाओ ।। २४९ ॥ किं ताण जीविएणं, विहलं चिय ताण गम्भउवहणं । जाउ नियभत्तुणा सह, भुजंति न एगथालंमि ॥ २५० ॥ ता तेण दोहलेणं, अपुज्जामाणेण दुम्बलसरीरा । सिरिचंदगुत्तरन्ना, दिहा तह जंपिया एवं ।। २५१ ॥ किं तुज्झ नेव पुज्जइ, इ साहीणे वि पुहइनाहंमि । अहवा कस्स वि दुव्बयण-सल्लपरिपीडिया सि तुर्म ॥२५२।। अह धारिणी पयंपइ, न हु एवं देव ! कारणं किंतु । गम्भाणुभावजणिओ, मह वट्टइ दोहलो एसो ।। २५३ ।। जइ नाह तए सद्धि, अहयं भुंजामि एगथालंमि । तो भणइ निवो चिट्ठसु, वीसत्था पूरइस्से इं॥ २५४ ॥ अह बीयदिणे भोयण-वेलाए जाव आहबइ देवि । तो चाणको निवई, वारइ विन्नायपरमत्यो ॥२५५ ।। भणइ य तुह आहारो,
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