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________________ RSINGHASIRECe लो ? देव ! । सो भणइ न याणे हं, किंतु न तिप्पामि भुजतो ॥ २२५ ॥ अह चिंतइ चाणको, भोयणसमयंमि नूणमेयस्स। सिद्धो को वि हु भुंजइ. अओ न तिप्पेइ एम त्ति ॥ २२६ ॥ तो बीयदिणे इट्टाल-चुन्नओ भोयणस्स सालाए। खिविओ ता पयपंती, दो दिहा बालपुरिसाण ॥ २२७ ।। नायं च इमं दो लहु, सिद्धनरा केवि भुत्तुमायति । तो वीयदिणे भोयणहा सालाए कारिओ धूमो ॥ २२८ ॥ तेण य गलियं तं लोयणाण, सिद्धजणं तो दिहा । उभओ पासे रन्नो, उबविट्ठा चिल्लया दोवि ।। २२९ ॥ ददृण चंदत्तो, पभणइ विट्टालिओ अहमिमेहिं । इय जाओ दुटुमणो, तं पिक्खिय भ-१ णइ चाणको ॥२३०॥ रे ! किवि मणोजाओ, अज्ज चिय तं सि नूण सुद्धप्पा । बालकुमारजईहिं, सह भुतो जे सि एगत्थ ॥ २३१ ॥ को साहूहिं सद्धिं भुत्तं पावेइ एगथालंमि । ता तं चिप सुरुयत्यो, सुलद्धमिह जीवियं तुज्झ ॥२३२ ।। एए च्चिय सुकयत्था, जियलोए उज्झिऊण जे भोए । बालत्ते निक्खता, जिणिदधम्मे जओ भणिय ॥ २३३ ॥ धनाउ बालमुणिणो, बालत्तणयंमि गहियसामन्ना । अणरसियनिव्विसेसा, जेहि न नाओ पियविओगो || २३४ ॥ एवं स चंदगुत्तं, अणुसासिय चिल्लए विसज्जेइ । तो गंतूण गुरूणं, सोयालंभं कहइ एवं ॥ २३५ ।। जइ तुह सोसावि इमं, करंति ता सोहणं किमन्नत्थ । ता वारिज्जसु एए, इय भणिए जंपए मूरी ॥२३६ ॥ भद्दय ! हवेसि सड़ो, नामेणं चेव न उण चरिएण । जं एसि चिल्लयाणं, दुन्हंपि न देसि आहारं ।। २३७ ॥ एएणं चिय अन्नत्य, पेसिया साहुणो मए सव्वे । एए पुण वलिऊणं, समागया मज्झ नेहेण ।। २३८ ॥ना भद्द ! तुज्झ इत्तिय-पाचारंभस्स किं फलं अन्नं । जइ एरिसदुक्काले, न देसि । दाणं मुणीण जओ ॥२३९।। विणर सीस परिक्खा, सुहडपरिक्खाक होइ संगामे । बसणे नित्तपरिक्खा, दामपरिक्खा य
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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