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विधि 13 भरणपमिया, सालीओ मग्गिया तेण ॥२०९ ॥ दिन्ना य तेहिं इत्थं, पूरियभंडारकुट्ठागारो सो । कयकिच्चो चाणक्को, 9 ॥४॥ रज्ज राउ व्य पालेइ ॥ २१० ॥ अह विहरंता सिद्धंत-जलहिउल्लासससहरसारिच्छा । सिरिविजयमूरिगुरुणो, संपत्ता दि
पकरणम् तमि नयरंमि ॥ २११ ।। तो तत्य आगएहिं, जंघावलवज्जिएहि नाणेण । सिरिविजयमूरिगुरुहि, दुभिक्खमणागयं नाउं ॥२१२।। तत्थेव वुवासं, काउं कामेहि ठाविओ सपए । मूरी तस्सेगंते, सिद्धवएसा बहू दिना ॥ २१३ ॥ अह पेसिओ स सूरी, सबालवुडाउलं गणं गहिउँ । अन्नत्य सुभिक्खमी, तो दुवे चिल्लया लहुया ॥ २१४ ॥ नियगुरुसिणेहविहुरा, ६ वलिऊण समागया गुरुसगासे । साहति नियागमणं, तो भणिया वुहसूरीहिं ।। २१५ ॥ वच्छ। ! वह तुब्भे, इत्थ भवि. | स्सइ महंतदुभिक्खं । पमणति ते पहुपए, सकेमो कहवि न चएउं ॥२१६ ।। तो धरिया मूरोहिं, अह जाए पुन्धकहिय दभिक्खे । जे लहइ गुरू पवरं, त तेर्सि देइ वाला ॥ २१७॥ तो चिल्लएहि चितिय-मजुत्तमेयं गुरुमि सीयते । सोयइ सयलो गच्छो, जम्हा एयं सुए भणिों ॥२१८।। जस्स कुलं आयत्तं, तं पुरिसं आयरेण रक्खि जा । नहि तुंबंमि पणहे, अश्या साहारया इंति ॥ २१९ ॥ ता जो अंजणजोगो, तइया अहिणवगुरूण दिज्जतो । कुटुंतरिएहि सुओ, तं अम्हे संपई कुणिमो ॥ २२०॥ इय परिभाविय दोहि वि, सो जोगो मिलिओ तहा सिद्धो। तेणंजणजोगेण, अदीसमाणा य ते हुति ॥ २२१ ॥ तो चंदगुत्तरन्नो, उभओ पासेसु चिल्लया दोवि । उवविसियपुन्नथाले, भुत्तणं जंति पदिवसं ॥ २२२ ॥ अन्नदिणपमाणेणं, भुत्ते सिरिचंदगुत्तभूवालो । तुरियं उद्याविज्जइ, अजित्रभीएहि विज्जेहिं ।। २२३ ।। एवं इगजणभत्ते, जणति.
४॥४४॥ यगेणं विभजमाणमि । ऊणोयरियाइ किसो, मुणि व्व जाओ महीनाहो ॥२२४॥ तं तह दहं पुच्छइ, चाणको कोस दुब्ध.
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