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व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः ॥४२१॥
५ शतके उशः ७ परमाण्वादेरनधादि सू०२१४
परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सअड्डे समझे सपएसे?, उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे?, गोयमा! अणड्ढे अमझे अपएसे,नो सअड्ढे नो समझे नो सपएसे । दुपदेसिए णं भंते! खंघे किं सअद्धे समझे सपदेसे उदाहु अणद्धे अमझे अपदेसे?, गोयमा! सअद्धे अमझे सपदेसे, णो अणद्धे णो समझे णो अपदेसे । तिपदेसिए णं भंते ! खधे पुच्छा, गोयमा ! अणद्धे समझे सपदेसे, नो सअद्धे णो अमझे णो अपदेसे, जहा दुपदेसिओ तहा जे समा ते भाणियब्वा, जे विसमा ते जहा तिपएसिओ तहा भाणियब्वा । संखेजपदेसिए णं भंते ! खंधे किं सअड्ढेद ? पुच्छा, गोयमा ! सिय सअद्धे अमझे सपदेसे सिय अणडूढे समज्झे सपदेसे, जहा संखेजपदेसिओ तहा असंखेजपदेसिओवि, अणंतपदेसिओऽवि ॥ (सूत्रं २१४)।
'दुपएसिप'इत्यादि, यस्य स्कन्धस्य समाः प्रदेशाः स सा॰ यस्य तु विषमाः स समध्यः, संख्येयप्रदेशिकादिम्तु स्कन्धः समप्रदेशिकः इतरश्च, तत्र यः समप्रदेशिकः स सार्दूऽमध्यः, इतरस्तु विपरीत इति ॥
परमाणुपोग्गले णं भंते ! परमाणुपोग्गलं फुसमाणे किं देसेणं देसं फुसइ १ देसेणं देसे फुसइ २ | देसेणं सब्वं फुसइ ३ देसेहिं देसं फुसति ४ देसेहिं देसे फुसइ ५ देसेहिं सब फुसइ ६ सब्वेणं देस फुस|ति ७ सव्वेणं देसे फुसति ८ सवेणं सव्वं फुसइ ९?, गोयमा! णो देसेणं देस फुसइ णो देसेणं देसे | फुसति णो देसेणं मन्वं फुसह णो देसेहिं देस फुसति नो देसेहिं देसे फुसइ नो देसेहिं मन्वं फुसति णो सब्वेणं देसं फुसइ णो सब्वेणं देसे फुसति, सब्वेणं सव्यं फुसइ, एवं परमाणुग्गले दुपदेसियं फुसमाणे सत्त- मणवमेहिं फुसति.परमाणुपोग्गले तिपएसियं फुममाणे णिप्पच्छिमएहिं तिहिं फु०,जहा परमाणुपोग्गले तिप
कर
४२१॥