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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
अभयदेवीया वृत्तिः ॥४१४॥
५ शतके उद्देशः६ इषुपातादौ क्रिया सू०२०६
करेति आययकन्नाययं उसु करेत्ता उई वेहासं उसु उविहइ २ ततो णं से उसु उई वेहासं उविहिए समाणे जाई तत्थ पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं अभिहणइ वत्तेति लेस्सेति संघाएइ संघद्देति परितावेइ किलामेइ ठाणाओ ठाणं संकामेइ जीवियाओ ववरोवेइ तए णं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए १, गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे धणुं परामुसइ २ जाव उव्विहइ तावं च णं से पुरिसे कातियाए जाव पाणातिवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुढे, जेसिपि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए तेऽवि य णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं | पुट्ठा, एवं धणुपुढे पंचहिं किरियाहिं, जीवा पंचहिं, आहारू पंचहिं, उसू पंचहिं, सरे पत्तणे फले पहारू पंचहिं, | ॥ (सूत्रं २०५)॥ अहे णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए अहे वीससाए पच्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई जाव जीवियाओ ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे कतिकिरिए ?, गोयमा ! जावं च णं से उसू अप्पणो गुरुयाए जाव ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चउहिं किरियाहिं पुढे, जेसिपि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए तेवि जीवा चउहिं किरियाहिं, धणुपुढे चउहिं, जीवा चउहिं, पहारू चउहिं, उसू पंचहिं, सरे पत्तणे फले पहारू पंचहिं, जेवि य से जीवा अहे पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे चिट्ठति तेवि य णं जीवा कातियाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा ॥ (मूत्रं २०६)॥ ... 'पुरिसे णमित्यादि 'परामुसईत्ति 'परामृशति' गृह्णाति, 'आययकण्णाययंति आयत:-क्षेपाय प्रसारितः कर्णायत:| कर्ण यावदाकृष्टस्ततः कर्मधारयादू आयतकर्णायतः अतस्तं, 'इषु वाणं 'उड्डू वेहासंति ऊर्ध्वमिति वृक्षशिखराद्यपेक्षयाऽपि
आ०२२९
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