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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः ॥३०८॥
३ शतके उद्देशः२ चमरोत्पात: | सु०१४३
२ वग्गइ २ गजइ २ हयहेसियं करेइ २ हत्थिगुलगुलाइयं करेइ २ रहघणघणाइयं करेइ २ पायदद्दरगं करेइ २ | भूमिचवेडयं दलयइ २ सीहणादं नदइ २ उच्छोलेइ २ पच्छोलेइ २ तिपई छिंदइ २ वाम भुयं ऊसवेइ २ दाहि
णहत्थपदेसिणीए य अंगुट्टणहेण य वितिरिच्छमुहं विडंबेइ २ महया २ सद्देणं कलकलरवेणं करेइ, एगे अबीए | फलिहरयणमायाए उड्ढं वेहासं उप्पइए, ग्वोभंते चेव अहेलोयं कंपेमाणे चेव मेयणितलं आकर्ट (साकइद) तेव | तिरियलोयं फोडेमाणेव अंबरतलं कत्थइ गजंतो कत्थइ विज्जुयायंते कत्थइ वासं वासमाणे कत्थई रउग्घायं पकरेमाणे कत्थइ तमुकायं पकरेमाणे वाणमंतरदेवे वित्तासेमाण २ जोइसिए देवे दुहा विभयमाणे २ आयरक्खे देवे विपलायमाणे २ फलिहरयणं अंबरतलंसि वियदृमाणे २ विउज्झाएमाणे २ ताए उकिट्ठाए जाव तिरियमसंखेजाणं दीवसमुद्दाणं मझमज्झेणं वीयीवयमाणे २ जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेव सोहम्मबडेंसए विमाणे जेणेव सभा सुधम्मा तेणेव उवागच्छइ २ एगं पायं पउमवरवेइयाए करेइ एगं पायं सभाए सुहम्माए करेइ | फलिहरयणेणं महया २ सद्देणं तिक्खुत्तो इंदकीलं आउडेइ २ एवं वयासी-कहि णं भो! सके देविंदे देवराया? कहि णं ताओ चउरासीइ सामाणियसाहस्सीओ? जाव कहि णं ताओ चत्तारि चउरासीइओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ? कहि णं ताओ अणेगाओ अच्छराकोडीओ अज अज हणामि अज महेमि अन्ज बहेमि अज मम अवसाओ अच्छराओ वसमुवणमंतुत्तिकटु तं अणिटुं अकंतं अप्पियं असु० अमणु० अमणा० फरुस गिरं निसिरह, तए णं से सक्के देविंदे देवराया तं अणिटुं जाव अमणामं अस्सुयपुव्वं फरुसं गिरं सोचा निसम्म
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