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________________ श्री सूत्रकृताङ्गदीपिका द्वि.श्रु.स्कन्धे प्रथमाध्ययनम् KEEKKCKSEEKIKOKAKKAKKASKS आहसे जहा नामए केइ पुरिसे कोसिउ असिं अभिनिव्वद्वित्ता णं उवदंसेजा- अयमाउसो ! असी अयं कोसी, एवमेव नत्थि केइ उर्वदंसित्ता- अयमाउसो ! आया अयं सरीरं, से जंहा वा केइ पुरिसे मुंजाओ इसिअं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा- अयमाउसो! मुंजा अयं इसीया, एवमेव नत्थि केइ उवदंसित्तारो-अयमाउसो!आया इंदं शरीरं, से जहानामए केइ पुरिसे मंसाओ अळिं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंर्सिज्जा अयमाउसो! मंसे अयं अट्ठी, एवमेव नत्थि केइ उवदंसितारोअयमाउसो! आया इदं सरीरं, से जहा नामए केइ पुरिसे करतलाओ आमलगं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसिज्जा अयमाउसो! करयले अयं आमलए, एवमेव नत्थि केइ उवदंसित्तारो अयमाउसो! आया इदं सरीरं, से जहा नामए केइ पुरिसे दहिओ णवणीयं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसिजाअयमाउसो! नवणीयं अयं उर्दसी, एवमेव नत्थि केइ उवदंसित्ता अयमाउसो! आया इदं सरीरं, जहानामए केइ पुरिसे तिलेहिंतो तिल्लं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेजा अयमाउसो! तिल्ले अयं पिण्णाए (१) । अभिनिट्टित्ताणं उक्दंसेइ AM पुरिसे अभिनिवट्टित्ताणं उवदंसेत्तारो. (२) JAM जहाणामए केइ (३)AM 'इय' एवं सर्वत्र ज्ञेयं (४) JAM दंसेजा, सर्वत्र एवं ज्ञेयं (५) IAM 0 सेत्तारो सर्वत्र एवं ज्ञेयं (६) उदसी उदश्चित्-तक्रं
SR No.600365
Book TitleSutrakritang Sutra Dipika Dwitiya Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkulgani
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1993
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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