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________________ KE प्रगृहीतं तु रजोहरणाहि औधिकोपधिरूपं तत्र प्रतिबन्ध: स्यात्, जण्णं जण्णं त्ति - यां यां दिशम् इच्छन्ति विहां तां तां दिशं . विहरन्ति, किंभूता:? - अप्रतिबद्धाः, शुचिभूता: भावशुद्धिमन्तः श्रुतिभूता का प्राप्तसिद्धान्ताः, लघुभूता अल्पोपधयो अगौरवाश्च, अनल्पग्रन्था बह्वागमाः, न विद्यते आत्मन: सम्बन्धि ग्रन्थो हिरण्यादिः येषां ते अनात्मग्रन्था इति वा ॥६८॥ तेसि णं भगवंताणं इमा एयारूवा जायामायावित्ती हुत्था तं (जहा)- चउत्थे भत्ते छठे भत्ते अट्ठमे भत्ते दसमे भत्ते दुवालसमे भत्ते चोद्दसमे भत्ते अद्धमासिए मासिए चउमासिए पंचमासिए छम्मासिए, अदुत्तरं च णं उवक्खित्तचरया णिक्खित्तचरया उक्खित्तणिक्खित्तचरया अंतचरगा एवं पंतचरगा लूहचरगा समुदाणचरगा संसट्ठचरगा असंसट्ठचरगा तजायसंसट्ठचरगा है दिट्ठलाभिया अदिट्ठलाभिया भिक्खलाभिया अभिक्खलाभिया अन्नायचरगा अनगिलायचरगा उवणिहया संखादत्तिया परिमियपिंडवाइया सुद्धेसणिया अंताहारा पंताहारा विरसाहारा लूहाहारा आयंबिलिया निव्विगइया अमजमंसासिणो नो नियागरसभोई सजिया वीरासणिया दंडायतिया लगंडसाइणो आयावगा अवाऊडा अगंडुया अणिळुहा धूत-मंसु-केस-रोम-नहा सव्वगाय ॥६१॥ १B हुत्थ ९ खित्तचरया ३ DIAM Qरा अरसाहारा विर० ४ JAM धुतकेश-मंसु०
SR No.600365
Book TitleSutrakritang Sutra Dipika Dwitiya Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkulgani
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1993
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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