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श्रीसूत्रकृताङ्ग
चूर्णिः ॥४९॥
द्वितीयश्रुतस्कन्धे प्रथममध्ययनम्
[४] से जहाणामए रुक्खे सिया पुढवीजाते पुढविसंवुड्ढे पुढविअभिसमण्णागते पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति एवामेव धम्मा वि पुरिसाइया जाव अभिभूय चिट्ठति ।
[५] से जहानामए पुक्खरणी सिया पुढविजाता जाव पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति एवामेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति ।
[६]से जहाणामए उदगपोक्खले सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति एवामेव धम्मा वि जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । । [७] से जहाणामए उदगबुब्बुए सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति एवमेव धम्मा वि
पुरिसाईया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति । ( सूत्र ६६०) __ (चू०) अहावरे तच्चे पुरिसे इस्सरकारणिए।' इध हि पुरिसाइया धम्मा-स्वभावाः । जीवानामजीवानां
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१. पुरिसज्जाते ईसरकारणिए-मूले।