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________________ श्रीसूत्रकृताङ्ग चूर्णि: ॥ ४८ ॥ द्वितीयश्रुतस्कन्धे प्रथममध्ययनम् जाव सेणावतिपुत्ता । तेसिं च णं एगतीए सड्डी भवति, कामं तं समणा य माहणा य पहारिंसुगमणाए जाव जहा मे एस धम्मे सुअक्खाए सुपण्णत्ते भवति । (सूत्र ६५९) इह खलु धम्मा पुरिसादीया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिसपज्जोइता पुरिसअभिसमण्णागता पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति ।। A [१] से जहानामए गंडे सिया सरीरे जाते सरीरे वुड्ढे सरीरे अभिसमण्णागते सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति एवामेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति । | [२] से जहाणामए अरई सिया सरीरे जाया सरीरे अभिसंवुड्डा सरीरे अभिसमण्णागता सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति एवामेव धम्मा पुरिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति । __ [३] से जहाणामए वम्मिए सिया पुढवीजाते पुढवीसंवुड्ढे पुढवीअभिसमण्णागते पुढवीमेव अभिभूय | चिट्ठति एवमेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव अभिभूय चिट्ठति । ॥४८॥
SR No.600363
Book TitleSuyagadang Suttam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages480
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size26 MB
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