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________________ Ri अदिण्णादाणवत्तिए त्ति आहिते । (सूत्र ७०१) श्रीसूत्रकृताङ्ग द्वितीयचूर्णिः | (चू०) अहावरे सत्तमे किरियाठाणे अदिन्नादाणवत्तिएत्ति० ।' से जधाणामए आतहेतुं अहमे तुं] (तं) श्रुतस्कन्धे ॥११०॥ हरितं [इस्सामि] परि जिस्सामि इति एवंणेति । अगारपरिवारहेतुं वा हरति । योगत्रिककरणत्रिकेण सावज्जेत्ति सत्तमे द्वितीयकिरि० ७ ॥७०१॥ मध्ययनम् | (मू०) अहावरे अट्ठमे किरियाठाणे अज्झत्थिए त्ति आहिज्जति, से जहाणामए केइ पुरिसे, से णत्थि । णं केइ किंचि विसंवादेति, सयमेव हीणे दीणे दुढे दुम्मणे ओहयमणसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविटे करतलपल्हत्थमुहे अट्टन्झाणोवगते भूमिगतदिट्ठीए झियाति, तस्स णं अज्झत्थिया असंसइया चत्तारि ठाणा एवमाहिज्जंति, तं०-कोहे माणे माया लोभे, अज्झत्थमेव कोह-माण-माया-लोहा, एवं खलु तस्स। तप्पत्तियं सावज्जे ति आहिज्जति, अट्ठमे किरियाठाणे अज्झथिए त्ति आहिते । (सूत्र ७०२) | (चू०) अहावरे अट्ठमे अज्झथिए ।' से जधा० केइ पुरिसे णत्थि णं विसंवादेति । यो हि यद्विवक्षुश्चिकीर्षुर्वा ॥११०॥ १. अहावरे अट्ठमे किरियाठाणे अज्झत्थिए त्ति आहिज्जति, से.....-मूले ।
SR No.600363
Book TitleSuyagadang Suttam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages480
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size26 MB
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