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॥ श्रीआचाराङ्ग प्रदीपिका ॥
પાટણમાં સદ્ગત થયેલા જિનહંસસૂરિ,
- પં. લાલચંદભગવાનદાસ ગાંધી લિખિત પુસ્તક ઐતિહાસિક લેખ સંગ્રહ પૃ. ૨૩૯.
( ६ )
आचार्य जिनहंससूरि : इनके पश्चात् गच्छनायक श्री जिनहंससूरिजी हुये । सेत्रावा नामक गाममें चोपड़ा गोत्रीय साह मेघराज इनके पिता और श्री जिनसमुद्रसूरिजी की बहिन कमलादेवी माता थी। सं. १५२८ में इनका जन्म हुआ था. आपका जन्म नाम धनराज और धर्मरंग दीक्षा का नाम था तथा सं. १५३५ में विक्रमपुर में दीक्षा ली थी। सं. १५५५ में अहमदाबाद नगर में आचार्यपद स्थापना हुई । तदनन्तर सं. १५५६ ज्येष्ठ सुदि नवमी के दिन रोहिणी नक्षत्रमें श्रीबीकानेर नगरमें बोहिथरा गोत्रीय करमसी मंत्रीने परोजी लाख रपिया व्यय करके पुनः आपका पद महोत्सव किया और उसी समय शांतिसागराचार्यने आपको सूरिमंत्र प्रदान किया. वहीं नमिनाथ चैत्य में बिम्बों की प्रतिष्ठा करवाई । तदनन्तर एक बार आदरा निवासी संघवी डुंगरसी, मेघराज, पोमदत्त प्रमुख संघ के आग्रह पूर्वक बुलाने पर आप आगरा नगर गये, उस समय बादशाह के भेजे हुए हाथी, घोड़े, पालखी, बाजे, छत्र, चँवर आदि के आडम्बर से आपका प्रवेशोत्सव कराया गया; जिसमें गुरुभक्ति, संघभक्ति आदि कार्य में दो लाख रुपये खर्च हुये थे । चुगलखोरों की सूचना के अनुसार बादशाहने आपको बुलाकर धवलपुर में रक्षित कर चमत्कार दिखाने को कहा. तब आचार्यने दैविक शक्ति से बादशाह का मनोरंजन करके पांच सो बंदीजनों (कैदियों) को छुडवाया और अभय घोषणा कराकर उपाश्रय में पधार आये। तब सारे संघ को बड़ा हर्ष हुआ।
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