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________________ आचा. प्रदी० १।३।४ ARRERSI-RSSIRSAGAR यो हि क्रोधमुपादानतो बन्धाः' स्थितितो विपाकतोऽनन्तानुबन्धिलागतः क्षयमाश्रित्य प्रत्याख्यानपरिज्ञया जानाति सोऽपरमानादिदर्येतदेव प्रतिसूत्र लगयितव्यम् जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायदंसी, जे मायदंसी से लोभदंसी, जे लोभ! दंसी से पेज्जदंसो, जे पेज्जदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी, जे मोहदंसी से गम्भदंसी, जे गम्भदंसी से जम्मदंसी, जे जम्मदंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से णिस्यदंसी, जे णिरयदंसी | से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी । से मेहावी अभिणिवट्टेज्जा कोधं च माणं च मायं च लोभं च पेज्जं च दोसं च मोहं च गन्भं च जम्मं च मारं च णरगं च तिरियं च दुक्खं च । एयं पासगस्स दंसगं उपरयसत्थस्स पलियंतकरस्स, आया निसिद्धा सगडब्भि । किमत्थि उवधी पासगस्स, ण विज्जति ? णत्थि त्ति बेमि ।। (सू. १२६) ॥सीतोसणिज्जं ततियमज्झयणं समतं ।। १बन्धनतः-पा। ॥२३॥
SR No.600360
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJinhansasuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1992
Total Pages496
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size29 MB
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