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________________ भाषान्तरम् पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान ॥६२॥ साहिबके राहपर चलता है. एती करामतका धणी है, तो की किसी कोई जानहि देते हैं. इतना काम मेरे खातर गुरुके हुकम पर कीया है." एवी रीते कहीने सैन्य सहित अकबर बादशाह दिल्लीने विषे आव्यो अने श्रीमान् श्री शांतिचंद्र उपाध्यायजीने नमस्कार-स्तुति-बहुमान करो गुरुमहाराज पासे मोकल्या. एवी रीते भव्यजीवोए पण अमारी उद्घोषणा कराववी, कारण के दयाना अध्यवसाय विना मनुष्योनो मानवजन्म सर्वथा व्यर्थ छे. एक जीवदया ते ज भव्यजीवोने संसारथकी मुक्त करवा समर्थमान छे. सिद्धांतमा कयुं छे के "कल्लाणकोडीजणणी, दुरंत-दुरियारिवग्गनिटवणी। संसारजलधितरणी, इक्कु चिय होइ जीवदया ॥१॥" भावार्थ:-जीवदया ते कोटी कल्याणने उत्पन्न करनारी छे, तथा दुःखे करीने त्याग थइ शके एवा पापरूपी प्रचंड शत्रुवर्गने नाश करनारी तथा संसारसमुद्रथी तारवा माटे समर्थमान केवळ एक जीवदया जछे. अन्यत्र पण कयु छ के यदुक्तं महाभारतशांतिपर्वप्रथमपादे" सर्वे वेदा न तं कुर्युः, सर्वे यज्ञाश्च भारत ! । सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च, यः कुर्यात् प्राणिनां दया ॥१॥" भावार्थः-श्रीमान् कृष्णमहाराजा युधिष्ठिरने कहे छे के है भारत ! समय जीवोने अभयदान आपी जीवदया ॥ २॥
SR No.600358
Book TitleParyushanasthahnika Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherHirachand Hargovan Kapadia
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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