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________________ पर्युषणा भाषान्तरम् ष्टाह्निका व्याख्यान महाराज बोल्या के-जे दिवसे किल्लो ग्रहण करवानी इच्छा थाय ते दिवसे आपणे ग्रहण करशुं, आ बाबत तहारे लेशमात्र चिंता करवी नहि, परंतु तहारा सैन्यने अहीं ज राखq. आपणे बन्ने जइशं; सैन्यने कहेवू के नगर मध्ये के नगर बहार कोइनी हिंसा करवी नहिं तथा नाना-मोटा प्राणीओने मारवा नहि पण रक्षण करवू. एवी रीते शिक्षा आपी बन्ने एकाकी चाल्या. तेमना पछाडी सैन्य चाल्यु. ते अवसरे मुसलमानो बोलवा लाग्या “ एसे वराके पातसाह फिरके संगे लागा, ए सेवरा पातसाहकी पातसाहइ डबो देगा. दुश्मनके हाथे अकबरको दे देवेगा." इत्यादिक अनेक वचनोने सांभळतो बादशाह ते किल्लानी नजीक गयो. ते अवसरे गुरुमहाराजे एक फुकमात्रबडे करी किल्लानी आसपास रहेली खाइने पूरी दीधी, बीजी फुकमात्र मारवावडे करी शत्रुसैन्यने चित्रामणने विषे आलेखेलाना समान चित्रसंस्थित करी दी; तथा त्रीजी फुकमात्र मारवावडे करी दरवाजाना द्वार जेम धाणो फुटे तेम फुटी गया. ते ज समये बादशाह पोताना हस्तवडे करी शत्रुने ग्रहण करीने आश्चर्यवडे चकीत थइ रह्यो. त्यारबाद बादशाहे गुरुमहाराजने कयु के-महारा उपर किंचितमात्र कृपा करी, हे पूज्य ! कांइक आदेश करो. ते अवसरे गुरुमहाराजे दर वर्षे चौद क्रोड द्रव्यनी आवकनो लाभ करावनार जीजीयावेरो मुक्त करवानी तथा चकलानी जिह्वा (जीभो) नुं भक्षण तमारे करवु नहि, आवी मागणी धर्मार्थने माटे करी; तेथी अकबर बादशाहे बहुमानथी गुरुमहाराजनी मागणीनो स्वीकार कर्यो. त्यारवाद तरकडाओने बोलावी बादशाहे का के-अब बेफिकर तुम हुए, ए सेवरा अदबी खुदा है, इनकी बेअदबी मत करनी, देखो यह कैसा है. अपने राहपर चलता है, अदनाकु महारी पातसाइ देवे तो मैं क्या करूं? वास्ते सब इनकी कदम पोसी करो. कैसा यह बेन माफ कीह, ॥ ६१॥
SR No.600358
Book TitleParyushanasthahnika Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherHirachand Hargovan Kapadia
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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