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उत्तराध्ययन मूलम्-मुहत्तद्धं तु जहन्ना, तिण्णुदही पलिअमसंखभागमब्भहिआ।
चतुस्त्रिंश॥५७७॥ उक्कोसा होइ ठिई, नायवा काउलेसाए ॥ ३६ ॥
ॐामध्ययनम्,
(३४) व्याख्या-इयं स्थितिालुकाप्रभोपरितनप्रस्तटे तावदायुष्केषु नारकेषु द्रष्टव्या ॥ ३६ ॥
गा३६-४० मूलम्-मुहत्तद्धं तु जहन्ना, दुण्णुदही पलिअमसंखभागमब्भहिआ।
उक्कोसा होइ ठिई, नायवा तेउलेसाए ॥३७॥ व्याख्या-इयमीशानकल्पे ज्ञेया ॥ ३७॥ मूलम्-मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस होंती सागरा मुहुत्तहिआ। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ३८ ____ व्याख्या-इयं ब्रह्मलोकवर्गे च बोध्या ॥ ३८ ॥ ट्रमूलम्-मुहत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहत्तहिआ। उक्कोसा होइ ठिई, नायवा सुकलेसाए ॥३९॥l व्याख्या-एषा अनुत्तरविमानेषु मन्तव्येति सूत्रपट्कार्थः ॥ ३९ ॥ प्रकृतमुपसंहरन्नुत्तरग्रन्थसम्बन्धमाहमूलम्-एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई उ वण्णिआ होई।
॥५७७॥ चउसुवि गईसु एत्तो, लेसाण ठिइं तु वोच्छामि ॥ ४०॥
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