SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 480
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्ययन ।। ५५८ ।। १२ २१ काले अ अतित्तिलाभे ॥ ६७ ॥ रसे अतित्ते अ परिग्गहे अ, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ६८ ॥ व्याख्या - इहादत्तं खण्डखाद्यफलादिकं रसवद्वस्तु ॥ ६८ ॥ मूलम्—तण्हाभिभूअस्स अदत्तहारिणो, रसे अतित्तस्स परिग्गहे अ । मायामुखं वडइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ६९ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ अ, पओगकाले अ दुही दुरं । एवं अदत्ताणि समाययंतो, रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ७० ॥ रसारत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेवि किलेसदुक्खं, निवतई जस्स क ण दुक्खं ॥ ७१ ॥ एमेव रस्संमि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पचितो अ चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ७२ ॥ रसे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झेवि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥ ७३ ॥ ४ ॥ द्वात्रिंशमध्ययनम्. (३२) गा६८-७३ ॥५५८||
SR No.600346
Book TitleSavruttikam Uttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnkonwn
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy