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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे ॥ ५ ॥ ' तक की वस्तुओं का वर्णन, ३२ वें में प्रमाद स्थानों और असंयम के दुष्परिणामों, ३३ वें में आठ कर्मों के भेद प्रमेद, ३४ में में ६. लेश्याओं, ३५ वें में अणगार का स्वरूप और ३६ में में सम्पूर्ण लोक के पदार्थों का - जीव और अजीव का सुन्दर विवरण है। इस अकार यह सूत्र साधकीय जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सूचनाएं और प्रेरणाएं देने वाला है। प्रत्येक मुमुक्षु को इसका पुनः पुनः अध्ययनकर आत्म जागृति और निर्मलता करनी चाहिये । अवशेष अध्ययनों की कथाएँ भी बड़ी प्रबोधक हैं। प्राचीन काल से ही यह सूत्र बहुत ही आदरणीय रहा है। ४ मूल सूत्र में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। इस पर टीकाएं भी सबसे अधिक मिलती है। इसकी कुछ प्रतियां सचित्र भी मिलती हैं। ज्ञात टीकाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है: (१) नियुक्ति, कर्ता भद्रबाहु, प्राकृत गाथाएं ६०७, प्रकाशित । (२) चूर्णि, जिरंणदास गणिमहत्तर, ग्रंथाग्रंथ ५४५० प्रकाशित । (३) शिष्यहिता टीका, शांत्याचार्य -- वादिवेताल, ग्रन्थ १६००० प्रकाशित । ( ४ ) सुबोधा टीका, नेमिचंदमूरि, संवत् ११२६, ग्रन्थ १४००० प्रकाशित । (५) अवचूरि, ज्ञानसागरसूरि, सम्वत् १९४१, (६) वृत्ति, विनियहंस, अंचलगच्छ, सम्वत् १५६७-८१, (७) टीका, कीर्तिवल्लभ गणी, सम्बत् १५५२ अंचलगच्छ । (८) वृत्ति, खरतर, कमलसंयम, संवत् १५५४, जैसलमेर प्रकाशित । (६) लघु वृत्ति, ख. तपोरत्नवाचक सं० १५५०, (१०) टीका दीपिका, माणक्यशेखरसूरि अंचलगच्छ, अप्राप्त, (११) टीका अजितदेवरि, पल्लीवाल मच्छ, सं० १६२६, (१२) चूर्णि, गुणशेखर, (१३) दीपिका खरतर, लक्ष्मीवल्लभ, १८ वीं शताब्दी, प्रकाशित, (१४) वृत्ति भावविजयगणी, सं० १६८६, ग्रन्थ १६२५५, प्रकाशित, (१५) टीका, हर्षनन्दनगणी खरतर गच्छ, सं० १७११, बीकानेर के बड़े ( उपाश्रय) भंडार में है, (१६) टीका मकरंद, धर्ममन्दिर, सं० १७५०, लींबड़ी भंडार में प्रति है । (१७) टीका, SCOPE रह प्रस्तावना ॥ ५॥
SR No.600344
Book TitleUttaradhyayanani Part 03 And 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay Gani, Harshvijay
PublisherVinay Bhakti Sundar Charan Granthmala
Publication Year1959
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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