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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे ॥४॥ प्रस्तावना ॥४॥ कुछ कथा प्रसङ्ग जैन दृष्टि से बड़े महत्वपूर्ण हैं । जिनमें २३वें अध्ययन का केशी गौतम संवाद वास्तव में ही एक ऐतिहासिक महत्वपूर्ण प्रसङ्ग है। जिसमें भगवान महावीर और पार्श्वनाथ के आचार भेद सम्बन्धी कुछ अन्तर और उनकी वास्तविक एकता की चर्चा || है। इसी प्रकार २२वें रथनेमि अध्ययन में २२वें तीर्थकर अरिष्टनेमि और श्री कृष्ण का उल्लेख महत्वपूर्ण है । राजीमति के स्थनेमि को कहे हुए प्रबोध वाक्य एक सती साध्वी के महान् उद्गार हैं। प्रथम अध्ययन में विनीत और अविनीत के लक्षण, विनय का महत्व है । दूसरे में परिषह के समय शांत और सहिष्णु रहने का, तीसरे में मनुष्यत्व, धर्मश्रवण, श्रद्धा और संयम में पुरुषार्थ करना-इन चार बातों की दुर्लभता, चोथे में जीवन की चञ्चलता, दुष्ट कर्मों के दुखद परिणाम और स्वच्छंदता को रोकने का उपदेश है। पांचवें में भोगों की आसक्ति का दुष्परिणाम, अकाय और सकाय मरण और छठे में धन परिवार का शरण भूत न होना, मैत्री भाव, परिग्रह त्याग और संयमाचार का विवरण है । सातवें में नीच गति जाने वाले जीवों के लक्षण, लेशमात्र भूलका दुखद परिणाम और मानव जीवन के कर्तव्य का वर्णन हैं। आत्म प्रबोधक दसवां अध्ययन बहुत ही महत्व का है। उसमें गौतम स्वामी को संबोधन करते हुए "समय मात्र भी प्रमाद न करने का" जो उपदेश दिया है वह प्रत्येक व्यक्ति के लिए महान् लाभ प्रद है। ग्यारहवें में ज्ञानी और अज्ञानी के लक्षण, १५वें में आदर्श भिक्षु का स्वरूप, १६ में ब्रह्मचर्य, पालन के लिए दस समाधि | स्थान, १७वें पाप श्रमण और सूक्ष्म दोषों का विवेचन, चोबीसवें में अष्ट प्रवचन माता का वर्णन है। पच्चीसवें में वास्तविक यज्ञ का स्वरूप वर्णन है। २६ वें में भिक्षु की दिनचर्या । २८ वें में मोक्ष मार्ग के साधन, २६ वें में सामान्य भूमिका से मोक्ष तक की भूमिकाओं का और ७३ गुणों का वर्णन । ३० वें में तप का महात्म्य, उसके प्रकार और प्रभाव का वर्णन है । इसी प्रकार ३१ ३ में एक से लेकर तेतीस CERVEEEE VEETEEVEEEEEEEE
SR No.600344
Book TitleUttaradhyayanani Part 03 And 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay Gani, Harshvijay
PublisherVinay Bhakti Sundar Charan Granthmala
Publication Year1959
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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