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________________ उत्तराध्य- पनसूत्रम् ॥१३६॥ अध्य० ३६ ॥१३६॥ रासससससससस मूलम्-संसारत्था उजे जीवा, दुविहा ते विश्राहिआ। तसा य थावरा चेव, थावरा तिविहा तहिं ॥६॥ पुढवी आउ जीवा य, तहेव य वणस्सई । इच्चेते थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ ६ ॥ | व्या०–स्पष्टं ॥६॥ त्रैविध्यमेवाह-स्पष्टम् , नवरं इह तेजोवाय्वोर्गतित्रसत्वेन स्थावरमध्येऽनभिधानम् ॥६६॥ पृथिवीकायिकानाह मूलम्-दुविहा पुढवीजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपजत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥७०॥ वायरा जे | उ पज्जत्ता, दुविहा ते विआहिआ। सण्हा खरा य बोधव्वा, सण्हा सत्तविहा तहिं ।।७१॥ किण्हा १ नीला २ य रुहिरा ३ य, हालिद्दा ४ सुक्किला ५ तहा। पंडू ६ पणगमट्टीआ ७, खरा छत्तीसईविहा ॥७२॥ पुढवी अ सक्करा वालुगा य उवले सिला य लोणूसे । अय-तंत्र-तउव-सीसग-रुप्प-सुवरणे अ वइरे अ | ॥७३॥ हरिपाले 'हिंगुलए, 'मनोसिला 'सासगंजण पवाले' । 'अब्भपडलब्भवालुअ, बायरकाए मणि विहाणा ॥७४॥ गोमेज्जए' अरुअगे,' अंके फलिहे अ लोहिअखे अ। 'मरगय-मसारगल्ले, भुनश्री मोअग इंदनीले अ॥७॥ चंदण" गेल्य" हंसगब्भ"पुलए सोगंधिए" अ बोधव्वे । "चंदप्पभ''वेरुलिए, "जलकंते "सूरकते अ॥७६॥ व्याख्या-द्विविधाः पृथिवीजीवास्तु सूक्ष्माः सूक्ष्मनामकर्मोदयात् , बादरा बादरनामकर्मोदयात् , 'पज्जत्तमपज्जत्तत्ति' आहारशरीरे ܟܕܟܕܨ@ܓܨܝܒܕܟܕܟܕܟܬܕܦܕܦܛܦܢ
SR No.600344
Book TitleUttaradhyayanani Part 03 And 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay Gani, Harshvijay
PublisherVinay Bhakti Sundar Charan Granthmala
Publication Year1959
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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