SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्य यनसूत्रम् ॥८ ॥ अध्य०३२ ॥५॥ SARDARBADAAAAA | परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥१॥ ___ व्याख्या-'सीअजलावसन्नेत्ति' शीतजलेऽवसनो-निमनः शीतजलावसनो ग्राहर्जलचरविशेषैग हीतो महिष इवारण्ये, वसतौ हि कदाचित्केनचिन्मोच्येतापीत्यरण्यग्रहणम् ॥ ७६ ॥ अत्र शुभस्पर्शाणां मृगादिचर्मपुष्पवस्त्रादीनां संग्रहे स्त्रीसेवादौ च प्रवर्त्तमानश्चराचरान् हन्ति ॥ ७९ ॥ इहादत्तं शुभस्पर्श वस्त्रतूलिकादि ।। ८१ ।। मूलम् -तण्हाभिभूअस्स अदत्तहारिणो, फासे अतित्तस्स परिग्गहे अ। मायामुसं वडइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥८२॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ अ, पोगकाले अ दुही दुरंते । एवं अद ताणि समाययंतो, फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥८३॥ फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज्ज | all कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ॥८४॥ एमेव फासंमि गो प- | ओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुट्ठचित्तो अ चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥८५॥ फासे विरत्तो मणुमो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण। न लिप्पई भवमझे वि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं॥८६॥५॥ मूलम्-मणस्सभावं गहणं वयंति, तं रागहेडं तु मणुण्णमाहु । तं दोस हेउं अमणुण्णमाहु, समो उ जो GECEVETATE LEVEVA VENTEVE
SR No.600344
Book TitleUttaradhyayanani Part 03 And 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay Gani, Harshvijay
PublisherVinay Bhakti Sundar Charan Granthmala
Publication Year1959
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy