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उचराध्य
पनपत्रम्
॥४॥
॥त्थोवभोगेवि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ७१॥ एमेव रस्संमि गओ पोसं, उवेइ दुक्खो- अध्य० ३२ हपरंपराओ । पदुट्ठचित्तो अ चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे॥७२॥ रसे विरत्तो मणुओ विसो- 5 ॥४॥ गो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झेवि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥७३॥४ मूलम्—कायस्स फासं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुण्णमाहु। तं दोसहेडं अमणुण्णमाहु, समो अ जो तेसु स वीअरागो ॥७४॥ फासस्स कायं गहणं वयंति, कायस्स फासं गहणं वयंति। रागस्स हेउं समणुएणमाहु, दोसस्स हेउं अमणुण्णमाहु ॥७५॥ फासस्स जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालिअं पावइ से विणास। | रागाउरे सीअजलावसन्ने, गाहग्गहीए महिसे व रगणे ॥७६॥ जे आवि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे
से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दतदोसेण सएण जंतू, न किंचि फासं अवरज्झई से ॥७७॥ एगंतरत्तो रुइरंसि व 4 फासे, अतालिसे से कुणई पोसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥७॥ फा
साणुगासाणुगए अ जीवे चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहिं ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिट्टे ॥७९॥ फासाणुवाए ण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे अ कह सुहं से, संभोगकाले अ अतित्तिलाभे ॥८०॥ फासे अतित्ते अ परिग्गहे अ, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढ़ि। अतुट्ठिदोसेण दुही
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