SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्य- क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुईतदोसेण सपण जंतू, न किंचि रस्सं अवरज्झई से ॥६४॥ एगंतरत्तो रुइरेय. ३१ यनस्त्रम् रसंमि, अतालिसे से कुणई पोस। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥६५॥ ॥८३॥ Tell रसाणुगासाणुगए अ जीवे चराचरे हिंसइऽणेगरूवे चित्तेहिं ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिडे || ॥६६॥ रसाणुवाए ण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निोगे । वए विओगे अ कहिं सुहं से, संभोगकाले |भ अतित्तिलाभे ॥६७॥ रसे अतित्ते अ परिग्गहे अ, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्टि। अतुट्ठिदोसेण दुही | परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥६८॥ व्याख्या-बडिसविभिन्नकाएत्ति' बडिशं-प्रान्तन्यस्तामिषो लोहकीलकस्तेन विभिन्नो-विदारितः कायो यस्य स बडिशविभिन्नकायः | मत्स्यो यथा आमिषस्य-मांसस्य भोगे-खादने गृद्ध आमिषभोगगृद्धः ॥ ६३ ॥ अत्र चराचरान् भक्षणोपयोगिनो मृगपशुमीनपचिप्रभृतीन् कन्दमूलफलादींश्च हिनस्ति ॥ ६६ ॥ इहादत्तं खण्डखाद्यफलादिकं रसवद्वस्तु ।। ६८ ॥ मूलम-तहाभिभूअस्स अदत्तहारिणो, रसे अतित्तस्स परिग्गहे अ । मायामुसं वडइ लोभदोसा, तत्थावि 11 दुक्खा न विमुच्चई से ६६॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थो अ, पोगकाले अ दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ७०॥ रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि। EVECEVOVAVEGVESVESEVERALE
SR No.600344
Book TitleUttaradhyayanani Part 03 And 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay Gani, Harshvijay
PublisherVinay Bhakti Sundar Charan Granthmala
Publication Year1959
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy