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________________ उत्तराध्ययनसूत्रम् ॥५१॥ अध्य०३१ ॥५॥ ADDREADलारस ॥ अथैकत्रिंशमध्ययनम् ॥ ॥अहम् ।। उक्त त्रिंशत्तममध्ययनं अथैकत्रिंशं चरणविधिसंज्ञं व्याख्यायते, अस्य चायं सम्बन्धोऽनन्तराध्ययने तप उक्त तच्चरणवत 1 एव सफलमिति चरणमिहोच्यते, इतिसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रम्| मूलम-चरणविहिं पवक्खामि, जीवस्स उ सुहावहं । जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं ॥१॥ व्याख्या-चरणस्य विधिरागमोक्तन्यायश्चरणविधिस्तं प्रवक्ष्यामि जीवस्य तुरवधारणे भिन्नक्रमस्ततः सुखावहं तु सुखावहमेव, कथमित्याह-जमित्यादि स्पष्टमिति सूत्रार्थः ॥२॥ प्रतिज्ञातमाह एकोनविंशत्या सूत्रः . मुलम् - एगो विरई कुजा, एगओ अ पवत्तणं । असंजमे निअत्तिं च, संजमे अपवत्तणं ॥२॥ रागद्दोसे अ दो पावे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू रुभई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥३॥ दंडाणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥४॥ दिव्वे अ जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खू सहई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥५॥ विगहाकसायसगणाणं झाणाणं च दुभं तहा । जे भिक्खू वजई निच्च, से न अच्छइ मंडले । वएसु इंदियत्येसु, समिईसु किरियासु अ।जे भिक्खू जयई निच, से न अच्छइ मंडले ॥७॥ लेसासु छसु काएसु, छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छङ्ग मंडले ॥८॥ QEVEEVGVCEVGVEGVERO
SR No.600344
Book TitleUttaradhyayanani Part 03 And 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay Gani, Harshvijay
PublisherVinay Bhakti Sundar Charan Granthmala
Publication Year1959
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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