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________________ उत्तराध्य धनसूत्रम् ॥१२६ ॥ rece ख्यातां वा यथोक्तम् ॥ २३ ॥ मूलम् — पिचा मे सव्वसारंपि, दिजाहि मम कारणा । न य दुक्खा विमोपइ, एसा मज्म श्राहया २४ व्या० – पिता मे 'सर्वसारमपि ' सर्वप्रधानवस्तुरूपं " दिज्जाहित्ति " दद्यात् ॥ २४ ॥ मूलम् - मायावि मे महाराय ! पुत्तसोगदुहद्विश्रा । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाया ॥२५॥ व्या०—“ पुतसोमदुहट्टिअत्ति " पुत्रशोकदुःखार्त्ता ॥ २५ ॥ मूलम् - भायरो मे महाराय !, सगा जिट्टकणिट्टगा । न य दुक्खा विमोति, एसा मम श्रणावा ॥२६॥ व्या० – “ सगत्ति " लोकरूढितः सौदर्याः, स्वका वा स्वकीयाः ॥ २६ ॥ मूलम् - भइओि में महाराय !, सगा जिट्टकणिट्ठगा । न य दुक्खा विमोचंति, एसा मज्झ अलाहा २७ भारिया मे महाराय !, अणुरता अणुव्वया । अ' सुपुराणेहिं नयणेहिं, उरं मे परिसिंचइ ॥ २८ ॥ व्या० - " अणुवयत्ति " 'अनुव्रता' पतिव्रता ॥ २७ ॥ २८ ॥ मूलम् - अन्नं पारणं च रहाणं च, गंधमल्लविलेवणं । मए गायमणायं वा, सा बाला नोवभुजइ ॥ २६ ॥ खणंऽपि मे महाराय !, पासओवि न फिटइ । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अगाहया ३० व्या० – “ पासओविति” पार्श्व तथ, "न फिट्टइसि " नापयाति ॥ २६ ॥ ३० ॥ अध्य० २० | ॥१२६॥
SR No.600344
Book TitleUttaradhyayanani Part 03 And 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay Gani, Harshvijay
PublisherVinay Bhakti Sundar Charan Granthmala
Publication Year1959
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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