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उत्तराध्य
धनसूत्रम्
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ख्यातां वा यथोक्तम् ॥ २३ ॥
मूलम् — पिचा मे सव्वसारंपि, दिजाहि मम कारणा । न य दुक्खा विमोपइ, एसा मज्म श्राहया २४ व्या० – पिता मे 'सर्वसारमपि ' सर्वप्रधानवस्तुरूपं " दिज्जाहित्ति " दद्यात् ॥ २४ ॥
मूलम् - मायावि मे महाराय ! पुत्तसोगदुहद्विश्रा । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाया ॥२५॥ व्या०—“ पुतसोमदुहट्टिअत्ति " पुत्रशोकदुःखार्त्ता ॥ २५ ॥
मूलम् - भायरो मे महाराय !, सगा जिट्टकणिट्टगा । न य दुक्खा विमोति, एसा मम श्रणावा ॥२६॥ व्या० – “ सगत्ति " लोकरूढितः सौदर्याः, स्वका वा स्वकीयाः ॥ २६ ॥
मूलम् - भइओि में महाराय !, सगा जिट्टकणिट्ठगा । न य दुक्खा विमोचंति, एसा मज्झ अलाहा २७ भारिया मे महाराय !, अणुरता अणुव्वया । अ' सुपुराणेहिं नयणेहिं, उरं मे परिसिंचइ ॥ २८ ॥ व्या० - " अणुवयत्ति " 'अनुव्रता' पतिव्रता ॥ २७ ॥ २८ ॥
मूलम् - अन्नं पारणं च रहाणं च, गंधमल्लविलेवणं । मए गायमणायं वा, सा बाला नोवभुजइ ॥ २६ ॥ खणंऽपि मे महाराय !, पासओवि न फिटइ । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अगाहया ३० व्या० – “ पासओविति” पार्श्व तथ, "न फिट्टइसि " नापयाति ॥ २६ ॥ ३० ॥
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