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________________ SAA कल्पमूत्र अष्टमः सुबोधि० क्षण: ॥२५५॥ ॥ ८ ॥ -SCARSAASARALSCREENA अथ विस्तरवाचनया स्थविरावलीमाह । वित्थरवायणाए पुण इत्यादितः कासवगुत्ते पणिवयामि वित्थरवायणाए पुण अजजसभद्दाओ पुरओ थेरावली एवं पलोइज्जइ । तंजहा-थेरस्स णं अजजसभइरस तुंगियायणसगुत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तंजहा-थेरे अजभद्दबाहू पाईणसगोत्ते, थेरे अजसंभूइविजए माढरसगुत्ते । थेरस्स णं अजभद्दबाहुस्स पाईणसगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तंजहाथेरे गोदासे (१) थेरे अग्गिदत्ते (२) थेरे जण्णदत्ते (३) थेरे सोमदत्ते (४) कासवगुत्ते णं। थेरेहिंतो गोदासेहिंतो कासवगुत्तेहिंतो इत्थ णं गोदास गणे इति पर्यंत, विस्तरवाचनया पुनःआर्ययशोभद्रादग्रतः स्थविरावली एवं प्रलोक्यते। तत्रास्यां किल वाच M ANAS ॥२५५॥
SR No.600342
Book TitleKalpsutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay Gani
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1915
Total Pages622
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size39 MB
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