SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 6 उपासक, मित्ता भारिया समणस्स भगवओ महावीस्स अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा समर्ण भगवं महा-दशाङ्गन. ॥४॥ वीर वन्दइ नमसइ. २त्ता एवं वयासी, सदहामि णं भन्ते ! निग्गन्थं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह ।। | जहा णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए बहवे उग्गा भोगा जाव पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि देवाणु-. प्पियाणं अन्तिए मुण्डा भवित्ता जाव । अहण्णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए पश्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिस्सामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबन्धं करेह ॥ २१० ।। तए णं सा अग्गिमित्ता भाभिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुठवइयं सत्तसिक्वावइयं दुवालसविहं ki सावधन्न पाइयजइ. २ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २त्ता तामेव धम्मियं जाणप्पवर दुरुलाइ ना -'मेव दिस पाया तामेव दिस पडिगया ॥ २११ ॥ तए णं समणे भगवं महातीरे अन्नया कयाइ पालासपुराओ सहस्सम्बवणाओ पडिनिवखमइ. रत्ता पहिया जणश्यविहारं विहरइ ।। २१२ ॥ तए रणं से सदाल चुन समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ॥ २१३ ।। तए णं से गोसाले मङ्कलिपुसे ४ इमीसे कहाए लद्भटे समाणे एवं खलु सद्दालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाण निग्गन्थाणं दि₹ि2॥१८॥ 2% 4.
SR No.600341
Book TitleUpasakdasha Shrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy