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द्व रुणाभे विमाण देवत्ताए उववजिहि । तत्थ णं अत्थेगइयाण देवाणं चत्तारि पलिआवमाई ठिई पण्णना।
'तत्थ णं आणन्दम्स वि समणावासग्गस्स चत्तारि पलिओवमाडं ठिई पण्णत्ता।।६॥ नाणं समणे भगवं | महावीरे अन्नया कयाइ बहिया जाव विहरड ।। ६३ ॥ ताणं से आणन्दे समणावासा जाए अभिगय| जीवाजीवे जाव पडिलाभमाण विहरइ ॥६॥ तए णं सा सिवानन्दा भारिया समणावासिया जाया जाव पडिलाभमाणी विहरइ ॥ ६५ ॥ तए ण तस्स आणन्दस्स समणोवासगम्स उच्चावहिं मीलवयगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासेहिं अप्पाणं भावमाणस्स चोइस संवच्छराइं वइकन्ताई। पण्णरसमस्ससंवच्छरस्स
अन्तरा वट्टमाणस्स अन्नया कयाइ पुत्ररत्नावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झ- | | थिए चिन्तिए मणोगए सङ्कप्पे समुप्पजित्था। एवं खलु अहं वाणियगामे नयरे बहणं राईसर जाव |
सयस्स वि य णं कुडुम्बस्स जाव आधारे। तं एएणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणम्म भगवओ महा- 2 वीरस्स अन्तियं धम्मपण्णत्तिं उवसम्पजित्ताणं विहरित्तए। तं सेयं खलु ममं कलं जाव जलन्ते विउलं असणं '2. जहा पूरणो, जाव जेट्ठपुत्तं कुडुम्बे ठवेत्ता; तं मित्त जाव जेट्ठपुत्तं च आपुच्छित्ता. कोल्लाए सन्नि
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