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उत्तराध्ययन ॥३४६॥
चतुर्विंशमध्ययनम्.
गा३६-४०
मूलम्-मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तिण्णुदही पलिअमसंखभागमब्भहिआ।
उक्कोसा होइ ठिई, नायबा काउलेसाए ॥ ३६ ॥ व्याख्या-इयं स्थितिालुकाप्रभोपरितनप्रस्तटे तावदायुष्केषु नारकेषु द्रष्टव्या ॥ ३६ ॥
मूलम्-मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दुण्णुदही पलिअमसंखभागमभहिआ ।
____उक्कोसा होइ ठिई, नायवा तेउलेसाए ॥ ३७॥ व्याख्या-इयमीशानकल्पे ज्ञेया ॥ ३७॥ मूलम्-मुहत्तद्धं तु जहन्ना, दस होंती सागरा मुहुत्तहिआ। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ३८
व्याख्या-इयं ब्रह्मलोकवर्गे च बोध्या ॥ ३८ ॥ मूलम्-मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिआ। उक्कोसा होइ ठिई, नायवा सुक्कलेसाए ॥३९॥ व्याख्या-एषा अनुत्तरविमानेषु मन्तव्येति सूत्रषदकार्थः ॥ ३९ ॥ प्रकृतमुपसंहरन्नुत्तरग्रन्थसम्बन्धमाहमूलम्-एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई उ वण्णिआ होई।
चउसुऽवि गईसु एत्तो, लेसाण ठिइं तु वोच्छामि ॥ ४० ॥
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