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________________ उत्तराध्ययन ॥३०९॥ द्वात्रिंशमध्ययनम्. गा७४-७९ ३ मूलम्-कायस्स फासं गहणं वयंति, तं रागहेडं तु मणुण्णमाहु । तं दोसहेडं अमणुण्णमाहु, समो अ जो तेसु जो वीअरागो ॥ ७४ ॥ फासस्स कायं गहणं वयंति, कायस्स फासं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुण्णमाहु, दोसस्स हेउं अमणुण्णमाहु ॥ ७५ ॥ फासस्स जो गिद्धिमुवेइ तिवं, अकालिअं पावइ से विणासं । रागाउरे सीअजलावसन्ने, गाहग्गहीए महिसे व रणे ॥ ७६ ॥ व्याख्या-'सीअजलावसन्नेत्ति' शीतजलेऽवसन्नो निममः शीतजलावसन्नो ग्राहैर्जलचरविशेषैहीतो महिप इवारण्ये, वसती हि कदाचित्केनचिन्मोच्येतापीत्यरण्यग्रहणम् ॥ ७६ ॥ मूलम्-जे आवि दोसं समुवेइ तिवं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि फासं अवरज्झई से ॥ ७७॥ एगंतरत्तो रुइरंसि फासे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ७८ ॥ फासाणुगासाणुगए अ जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहिं ते परितापूइ बाले, पीलेइ अत्तट्रगुरू किलिटे॥७९॥ UTR-3
SR No.600340
Book TitleUttaradhyayanam Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraguptasuri
PublisherAnekant Prakashan Jain Religious Trust
Publication Year2010
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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