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________________ उत्तराध्ययन द्वितीयमध्य| यनम् (1) / / 179 // तत्संयमसुखं त्यक्तं, यन्मया भोगकाम्यया // 153 // तत्रैवं / खतनु-द्युतिद्योतितदिङ्मुखः // 154 // तमित्यूचे च भगवन् !, सोऽहं शिष्योऽस्मि वः प्रियः // स्वयं निर्याम्य यः पूज्यै- रागन्तुं प्रार्थितोऽभवत् // 155 // अहं हि व्रतमाहात्म्या-त्सुरोऽभूवं महर्द्धिकः // स्मृत्वा वाक्यं च पूज्यानां, खवाग्वद्ध इहाऽऽगमम् // 156 // मदनागमने कश्चि-त्कालक्षेपो बभूव यः॥ स तु ज्ञेयो नवोत्पन्नदेवकार्याकुलत्वतः॥ 157 // संयमभ्रष्टचित्तांश्च, युष्मान् बोधयितुं मया // तनाट्यं विदधे पूज्यै-र्यदृष्टमधुनाऽध्वनि ! // 158 // मयैव युष्मदाकूत-परीक्षार्थ परिष्कृताः // षट्कायाहा दारकाः षट् , ससाध्वीका विकुर्विताः // 159 // ततोऽवबुध्य वः प्राज्यं, मोहोन्मादमुदित्वरम् // मयोदपादि सैन्यादि-भयं तद्वंसनौषधम् // 160 // शङ्कातङ्कममुं तस्मा-त्यक्त्वा मोहसमन्वितम् // उन्मार्गगं मनोऽवाप्त-सन्मार्ग कुरुताऽऽत्मनः॥१६१॥ किञ्च-"संकंतदिवपेमा, विसयपसत्तासमत्तकत्तवा // अणहीणमणुअकज्जा, नरभवमसुई न इंति सुरा // 162 // चत्तारि पंच जोअणसयाई गंधो उ मणुअलोगस्स // उ8 वच्चइ जेणं, न हु देवा तेण आवंति // 163 // " इत्याद्यागमवाक्यानि, जानद्भिरपि सूरिभिः // मदनागमनेप्येत- कारब्धं किमीदृशम् ? // 164 // अन्यच्च दिव्यनाट्यादि-विलोकनकुतू| हलात् // कालं यान्तं बहुमपि, नैव जानन्ति निर्जराः ! // 165 // युष्माभिरपि तदिव्य-नाटकाक्षिप्तमानसैः // ऊर्द्धस्थैरेव षण्मासी, निन्येऽश्रान्तमुहूर्त्तवत् ! // 166 // तद्भदन्ताः! विमोहोऽयं, कर्तुं वो नैव युज्यते // कल्पान्तेऽपि UTR-1
SR No.600338
Book TitleUttaradhyayanam Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraguptasuri
PublisherAnekant Prakashan Jain Religious Trust
Publication Year2010
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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