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________________ SASARA व्याख्या-वासावासमित्यादितो उवागच्छित्तए ति यावत् , तत्र निग्गिन्झिा निग्गिज्झिा त्ति स्थित्वा स्थित्वा वर्षति अहे उवस्सयंसि वा आत्मनः साम्भोगिकानामितरेषां वोपाश्रयस्याधः तदभावे विकटगृहे-आस्थानमण्डपिकायां यत्र ग्राम्यपर्षदुपविशति, तत्र स्थितो हि वेलां वृष्टेः स्थितास्थितखरूपं च जानाति यथाऽशङ्कनीयश्च स्यात् वृक्षमूलं वाऽनिर्गलकरीरादौ उवागच्छित्तए त्ति उपागन्तुम् ॥ ३२ ॥ तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे कप्पइ से चाउलोदणे पडिगाहित्तए, नो कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए ॥ ३३ ॥ तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते भिलिंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे कप्पड़ से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए नो से कप्पड़ चाउलोदणे पडिगाहित्तए ॥३४ ॥ तत्थ से पुवागमणेणं दोवि पुव्वाउत्ताई कप्पंति से दोवि पडिगाहित्तए, तत्थ से पुव्वागमणेणं दोवि पच्छाउत्ताइं एवं नो से कप्पंति दोवि पडिगाहित्तए, जे से तत्थपुवागमणेणं पुवाउत्ते से कप्पइ पडिगाहित्तए, जे से तत्थ पुवागमणेणं पच्छाउत्ते नो से कप्पइ पडिगाहित्तए ॥ ३५॥ व्याख्या-तत्थ से पुव्वेत्यादितः पडिगाहित्तए ति यावत् सूत्रत्रयेण सम्बन्धः, तत्र तत्थ त्ति विकटगृहवृक्षमू USANTASAARESSESPRESSE क०४८
SR No.600334
Book TitleKalpsutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay Gani
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1992
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size37 MB
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