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________________ 3455445A कोशद्वयं गमागमेन पञ्चक्रोशावग्रहः । यच्चानन्तरं विदिक्षु इत्युक्तं तद् व्यावहारिकविदिगपेक्षयाऽवगन्तव्यम् , यतो भवन्ति हि ग्रामा मूलग्रामादाग्नेय्यादिविदिक्षु, निश्चयिकविदिक्षु चैकप्रदेशात्मकत्वान्न गमनागमनसम्भवः, अटवीजलादिना व्याघाते तु त्रिदिक्को द्विदिक्क एकदिक्को वाऽवग्रहो भाव्यः ॥९॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सवओ समंता सकोसं जोअणं भिक्खायरियाए गंतु पडिनियत्तए ॥१०॥ व्याख्या-वासावासमित्यादितो गंतु पडिनिअत्तए त्ति पर्यन्तं सुगमम् ॥१०॥ जत्थ नई निच्चोयगा निच्चसंदणा नो से कप्पड़ सबओ समंता सक्कोसं जोअणं भिक्खायरियाए गंतु पडिनियत्तए ॥ ११ ॥ ___ व्याख्या-जत्थ नई इत्यादितो निअत्तए त्ति पर्यन्तम्, तत्र यत्र नदी नित्योदका-नित्यमस्तोकजला नित्यस्यन्दना-नित्यश्रवणशीला सततवाहिनीत्यर्थः ॥११॥ एरावई कुणालाए, जत्थ चकिआ सिआ, एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा एवं चकिआ एवन्हं कप्पइ सवओ समंता सकोसं जोयणं गंतुं पडिनियत्तए ॥ १२॥ व्याख्या-एरावई इत्यादितो निअत्तए त्ति पर्यन्तम्, तत्र एरावती नाम नदी कुणालापुर्यां सदा द्विक्रोश 5
SR No.600334
Book TitleKalpsutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay Gani
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1992
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size37 MB
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