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________________ कल्पसूत्रकार किरणाव ॥१४४॥ HASHRSS-SSION अरस्स णं अरहओ जाव प्पहीणस्स एगे वासकोडिसहस्से विइक्कते, सेसं जहा मल्लिस्स तं च एवं पंचसहि लक्खा चउरासीई वाससहस्साइं विइक्ताई, तम्मि समए महावीरो निव्वुओ, तओ परं नव वाससयाई विइक्ताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ । एवं अग्गओ जाव सेयंसो ताव दट्रवं १८॥१८७॥ व्याख्या-श्रीअरनिर्वाणाद्वर्षाणां कोटिसहस्रेण श्रीमल्लिनिर्वाणं, ततश्च पञ्चषष्टिलक्षचतुरशीतिसहस्रनवशताशीतिवर्षातिक्रमे पुस्तकवाचना १८ ॥ १८७॥ कुंथुस्स णं अरहओ जाव प्पहीणस्स एगे चउभागपलिओवमें विइकंते, हस्सा, सेसं जहा मल्लिस्स १७॥ १८८॥ व्याख्या-श्रीकुन्थुनिर्वाणाद्वर्षकोटिसहस्रोनपल्योपमचतुर्थांशेन श्रीअरनिर्वाणं, ततश्च सहस्रकोटिपञ्चषष्टिलक्षचतुरशीतिसहस्रनवशताशीतिवर्षातिक्रमे पुस्तकवाचना १७ ॥ १८८ ॥ संतिस्स णं जाव प्पहीणस्स एगे चउभागूणे पलिओवमे विइकंते पन्नटुिं च, सेसं जहा मल्लिस्स १६ ॥ १८९॥ व्याख्या-श्रीशान्तिनिर्वाणात्पल्योपमार्द्धन श्रीकुन्थुनिर्वाणं, ततश्च पल्यचतुर्थाशपञ्चषष्टिलक्षचतुरशीतिसहस्रनवशताशीतिवोतिक्रमे पुस्तकवाचना १६ ॥ १८९ ॥ ॥१४॥
SR No.600334
Book TitleKalpsutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay Gani
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1992
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size37 MB
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