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प्रमादस्य स्थानानि ।
बाले, पीला रक्षण-सन्निासामे ॥९३ ॥
जे आवि दोसं समुवेइ तिवं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंत, न किंचि भावं अचरज्झई से ॥९॥ एगंतरत्तो रुइरंसि भावे, अतालिसे से कुणई पओसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो॥९१ ।। भावाणुगासाणुगए य जीचे, चराचरे हिंसइ णेगरूवे । चित्तेहिं ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ट गुरू किलिहे ॥ ९९॥ भावाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खण-सन्निओगे। पए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥१३॥ भावे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहि।। अतुहिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ९४ ॥ तण्हाऽभिभूयस्स अदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वडइ लोभदोसा, तत्थाऽवि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ९५॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते। एवं अदत्ताणि समाइयंतो, भावे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ९६॥ भावाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि?। तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवत्तए जस्स कए न दुक्खं ॥९७॥