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________________ है ॥६॥ पापस्थान वर्जनवक्तव्यता। == == = सम्महमाणो पाणाणि, बीयाणि हरियाणिय।असंजए संजय मन्नमाणे, पावसमणित्ति वुच्च संथारं फलगं पीढं, णिसिज्जं पायकंबलं । अप्पमजियमारुहई, पावसमणि त्ति वुचई दवदवस्स संचरई, पमत्ते य अभिक्खणं । उल्लंघणे य चंडे य, पावसमणि त्ति वुच्चई पडिलेहेइ पमत्ते, अवउज्झइ पायकंबलं । पडिलेहाअणाउत्तो, पावसमणि त्ति वुच्च पडिलेहेइ पमत्ते, से किंचि हु णिसामिया। गुरुं परिभावए णिचं, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१०॥ बहुमाई पमुहरी, थद्धे लद्धे अणिग्गहे। असंविभागी अचियत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥११ विवायं च उदीरेइ, अधम्मे अत्तपण्णहा । बुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणि त्ति वुचई ॥१२॥ अथिरासणे कुक्कुईए, जत्थ तत्थ णिसीयई। आसणम्मि अणाउत्ते, पावसमणि त्ति वुचई ।। ससरक्खपाओ सुयई, सेजं ण पडिलेहए । संथारए अणाउत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १४ ॥ दुद्धदही विगईओ, आहारेइ अभिक्खणं । अरए य तवोकम्मे, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१५॥ अत्यंतम्मि य सूरम्मि, आहारेइ अभिक्खणं । चोइओ पडिचोएइ, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १६ ॥ आयरियपरिचाई, परपासंडसेवए। गाणंगणिए दुब्भूए, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१७॥ सयं गेहं परिचज, परगेहंसि वावडे । णिमित्तेण य ववहरई, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१८॥ सन्नाइपिंडं जेमेइ, णेच्छई सामुयाणियं । गिहिणिसेजं च वाहेइ, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१९॥ व्याख्या-सम्मर्दयन् 'प्राणानिति प्राणिनो द्वीन्द्रियादीन् 'बीजानि' शाल्यादीनि 'हरितानि च' दूर्वादीनि, सकलै =
SR No.600327
Book TitleSukhbodhakhya Vruttiyutani Yttaradhyayanani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangsuri, Nemichandrasuri
PublisherPushpchandra Kshemchandra
Publication Year1937
Total Pages798
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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