________________
॥ २६२ ॥ अह सो वि तओ कुमरो, सुहिजणपरिवारिओ पियासहिओ । पुरनारिपलोइयरू-वसंपओ तत्थ संपत्तो | ।। २६३ ॥ बहुहासतोसवीणा-विणोयवरगेयणट्टकवेहिं । कीलइ पमुइयचित्तो, मयमंजरियाइ सह कुमरो॥२६४॥ अव|रण्हे सबजणो, रमिऊणं पुरवरे गओ सिग्धं । राया वि सयलपरिवा-रसंगओ भवणमणुपत्तो ।। २६५ ॥ कुमरो वि | विसजियसय-लपरियणो जाव रहवरं पत्तो । ता सा मयमंजरिया, डका उरगेण उग्गेण ॥ २६६ ॥ हाहारवं कुणंती, |डका डक्क त्ति तह य विलवंती । कंपंतसवगत्ता, पडिया कुमरस्स उच्छंगे ।। २६७ ॥ कुमरेण तओ भणिया, मा मा बीहेहि कुवलयदलच्छि ! । विसहरविसमप्पभावं, निमेसमेत्तेण काहामि ॥ २६८ ॥ एवं भणमाणस्स य, मुहुत्तमेत्तेण सा पिया तस्स । विसमविसपीडियंगा, खणेण निच्चेयणा जाया ॥ २६९ ॥ जीवियमुक्क त्ति विया-णिऊण कुमरो वि मोहमावन्नो । विलवइ करुणसरेणं, हाहाकारं विमुंचतो ॥ २७० ॥ कह कहवि हु किच्छेणं, अत्ताणं संवरेवि कुमरेणं । * रइऊण चियं ताहे, ठविया उयरम्मि सा भज्जा ॥ २७१ ॥ पज्जालिऊण जलणं, अत्ताणं जा खिवेइ सो कुमरो । सहस |त्ति ताव पत्तं, गयणाओ खयरजुयलं ति ॥ २७२ ॥ संपत्तमेत्तएण य, भणिओ कुमरो सुकोमलं वयणं । किमकारणेण सुपुरिस !, अत्ताणं खिवसि जलणम्मि ? ॥ २७३ ॥ अहयं खणमेत्तेण वि, सत्थसरीरं करेमि तुह भजं । एवं पजंपिऊणं, पहया अभिमंतियजलेण ॥ २७४ ॥ निद्दाखए व बुद्धा, अत्ताणं संवरेवि पसयच्छी । कयरो इमो पएसो, पुच्छंती उट्ठिया झत्ति ? ॥ २७५ ॥ तं खयराणं जुयलं, उट्ठावेऊण पणइणिं तस्स । जंपिय कुमरेण समं, उप्पइयं गयणमग्गम्मि ॥ २७६ ।। कुमरो वि पियासहिओ, रयणीए अइतमंधपउराए । पञ्चासन्ने देवय-उलम्मि सहस चिय गओ त्ति ॥ २७७ ॥ कुमरेण एत्थ समए, भणिया दइया पसन्नवयणेणं । आणेमि जाव जलणं, ताव तुमं चिट्ठ खणमेगं ॥ २७८ ।। एवं भणिऊण गओ, जलणं गहिऊण पुणरवि णियत्तो । ता पेच्छइ देवउले, उज्जोयं मणचमक्कारं ॥२७९॥