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________________ | कहेइ-एगत्व नयरे सयमेव राया चोरो, पुरोहिओ भंडेइ । तओ दो वि हरति । लोगो इमं जाणेत्ता भणेइ, जहा| जत्थ राया सयं चोरो, भंडिओ य पुरोहिओ। वणं भयह नागरया !, जायं सरणओ भयं ॥ ११ ॥ अमुचंतो पुणो तइयं कहेइ-एगस्स धिज्जाइयस्स धूया, सा य जोवजत्था अइबदसणिज्जा । सो वि धिजाइओ तं पासिऊण अज्झोववन्नो । तीसे कएण अईवदुब्बलीहूओ। बंभणीए पुच्छिओ-निब्धंधे कए कहियं । ताए भन्नइ-मा अधिई करेसु, | सहा करेमि जहा केणइ पओएण संपत्ती हवइ । पच्छा धूयं भणइ-अम्ह पुवं दारियं जक्खा भुंजंति, पच्छा वरस्स | दिज्जइ, ता तुह कालपक्खचउद्दसीए जक्खो एही, मा तं विमाणेसु, मा य तत्थ उज्जोयं काहिसि । तीए वि जक्ख. | कोउहल्लेण दीवओ सरावेण ठवेऊण नीओ। जक्खहरं भट्टो आगओ । सो तं परिभुंजिऊण रइकिलंतो पसुत्तो। इमाए | कोउगेण सरावं फेडियं, नवरं पेच्छइ पियरं । चिंतेइ य-जणणीए माया कय त्ति, ता संपयं होउ एसेव दइओ, किं लज्जाए। किंच-सेवेमि निधिसंकं, इम्हि जणयं पि किं वियप्पेण ? । रंगम्मि नच्चियाए, अलाहि अंगुढिकरणेणं ॥ १२ ॥ पच्छा ताई रइकिलंताई उग्गए वि सूरे न पडिबुझंति । पच्छा बंभणी मागहियं भणइ–'अइरुग्गयए वि सूरिए, चेइयथूभगए य वायसे । भित्तीगए य आयवे, सहि ! सुहिओ हु जणो न बुज्झइ ॥ १३ ॥' सा तीए धूया तं सुणित्ता पडिभणइ-तुममेव य अंब हे ! लवे, मा हु विमाणय जक्खमागयं । जक्खाहडए हु तायए, अण्णं दाणि Xगवेस ताययं ॥ १४ ॥ पच्छा धिज्जाइणी भणइ-नवमासा कुच्छीइ धारिया, पासवणे पुलिसे य महिए । धूया ! मे * गेहिए हडे, सलणए असलणए मे जायए ॥ १५॥ पुणो वि अन्नं कहेइ-एगेण धिजाइएण तलागं खणावियं । तत्थेव पालीए देवउलमारामो य कओ । तत्थ तेण जन्नो पवत्तिओ छगलगा जत्थ मारिजंति । अन्नया कयाइ सो धिज्जाइओ मरिऊण छगलगो चेव जाओ। सो य घेत्तूण अप्पणिज्जेहिं पुत्तेहिं तस्स चेव तलाए मारिजिउं जन्ने निजइ । सो य X8XXXXXXXXXXXX
SR No.600327
Book TitleSukhbodhakhya Vruttiyutani Yttaradhyayanani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangsuri, Nemichandrasuri
PublisherPushpchandra Kshemchandra
Publication Year1937
Total Pages798
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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