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________________ Е + + + + ECORICAREERENA + संचालन करवान कार्य प्रबल पुण्यनी अनुकूलता बगर बनी शकतुं ज नथी. आ ग्रन्थना बे विभाग| आ ग्रन्थनी प्रथम आवृत्ति प्रातःस्मरणीय पू० आगमोद्धारक आचार्यदेवेश स्व० गुरुदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी तरफथी प्रकाशन थयेल छे, ते पछी पू० श्रमण भगवन्तोनी संख्यामां वधारो थवाथी दशगुणी किंमते पण ते ग्रन्थ मेलववानुं मुश्केल थई | जवाथी आ ग्रन्थ- द्वितीय आवृत्तिरूपे हस्तलिखितप्रतिओ साथे मेलवीने अभ्यासीयोनी सवळता माटे प्रत्यन्तर पाठो-प्रस्तावना| परिशिष्टो-सारांश विगेरेथी सुशोभित बनावीने आ अन्थनो प्रथम विभाग प्रसिद्ध कराय छे. प्रस्तावना परिशिष्टो विगेरेथी आ ग्रन्थy कद मोटुं थइ जवाथी आ ग्रन्थने बे विभागमा व्यवस्थित रीतिए ब्हार पाडवामां आवे छे. हवे आ ग्रन्थना प्रथम विभागमां-प्रथमश्रुतस्कंधना प्रथमअध्ययनथी आठ अध्ययनो संपूर्ण छे तथा प्रस्तावना-परिशिष्टो, अध्ययनोनो सारांश विषयानुक्रम पण तेटला ज अध्ययनोनो तेनी साथे छे. बीजा विभागमा प्रथमश्रुतस्कंधना नवमा मध्ययनथी १९ अध्ययनो संपूर्ण छे, अने तेनी साथे बीजाश्रुतस्कंधना सर्व अध्ययनो छे. आ बीजा भागनी साथे पण प्रस्तावना-परिशिष्टोसारांश-विषयानुक्रम हवे पछी आपवामां आवनार छे. ग्रन्थप्रकाशननुं निमित्त___ वडोदरा शहरमां-प० पू० पन्न्यासप्रवर श्री चन्द्रसागरगणीन्द्रश्री- ( वर्तमानमा आ० श्री चन्द्रसामरबरिजीनु ) माठ ठाणा सह चातुर्मास (वि० सं० २००६) हतु. पू० पंन्यासप्रवरश्रीजीने अने तेओश्रीना शिष्य प्रशिष्यादिने आ दरम्यान वर्षीतप + + + + +
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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