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________________ ॥ द्वितीय - श्रीसंघाटकाध्ययनसारांशः ॥ कथाप्रारम्भ - पुत्रप्राप्ति - राजगृहनगरीमा विपुल धनधान्यादिनी समृद्धिवालो धन्य नामनो सार्थवाह हतो, तेने भद्रा नामनी स्त्री हती. घणा वर्ष विषयानन्दमां व्यतीत थया छतां मद्राशेठाणीने कंह संतान थयुं नहीं. एक समये भद्राशेठाणी आ सम्बन्धी विचारधाराए चढी अने पुत्रादिनी अप्राप्ति माटे खूब आर्चध्यान करवा लागी, प्राप्त थयेला धन-संपत्ति अने वैभवोने अने स्वजिंदगीने निष्फल मानी दिनप्रतिदिन वधु ने वधु चिन्तातुर थई. आ चिन्ताना परिणामे अनेक देव-देवीओनी मान्यताओ - पूजाओ करवा लागी पुत्रप्राप्ति करवानी तीव्र अभिलाषा जागी, पोताना आ अभिप्रायनी वात धन्यशेठने करी संमति मेळवी पुष्कल आडम्बर- धामधूमयुक्त सखीओना परिवार साथे तमाम देवायतनो-मन्दिरोमां जई भावभक्तिपूर्वक सेवा-पूजा आदि करी पोतानी वर्षोजूनी आशाने फलवती बनाववा दृढ संकल्पपूर्वकनी मान्यताओ करी तथाप्रकारनी भवितव्यताना योगे थोडा समयबाद शेठाणी गर्भवती थई, अने तेणीने योग्य सारसंभाल करतां योग्य समये पुत्ररत्ननो जन्म थयो, घणा हर्ष - प्रमोदथी महोत्सवपूर्वक देवताओनी बाधा - आखडीओथी आ पुत्र प्राप्त थयेलो छे तेम मानी तेनुं गुणनिष्पन्न एवं देवदिन्न नाम पायुं. विजयचोरना हाथे देवदिनपुत्रनुं मोत, अने विजयचोरनुं पकडाव - एकदा तहेवारना प्रसंगने पामी भद्रा शेठाणीए पोताना आ एकना एक पुत्रने अति प्रेमथी स्नान करावी, किंमती वस्त्रो पहेरावी अति मूल्यवान आभूषणो पहेरावी, बालकनी सारसंभाल माटे राखेल अति विश्वासु पंथक नामना नोकरने विनोद माटे शहरमां फेर
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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