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________________ नवङ्गी ० ० भीज्ञाताधर्मकथाङ्गे ॥ ३१ ॥ बंदन-- नमस्कार करी कहेवा लाग्यो के - हे प्रभु! आजथी मांडी हुं मारी चक्षु सिवाय बाकीनुं शरीर वोसरावी दउं लुं. अर्थात् चक्षु फरकवा सिवायना मारा शरीरनी हुं दरकार नथी राखतो 111 एम कही फरीथी दीक्षा ग्रहण करी. स्थविरो पासे ग्रहण - आसेवनशिक्षाथी मेघकुमार महात्मा तैयार थई एकादशांगपाठी बनी छट्ठ--अट्टम आदि घोर तपस्या करी क्लिष्ट कर्मोने खपावबा लाग्या. योग्य समये प्रभु पासेथी आज्ञा प्राप्त करी साधुनी बार पडिमाओने विधिपूर्वक सेवी तेम लागट सोल मासनी उत्कृष्ट तपस्यावालो गुणरत्नसंवत्सरतप आराध्यो. छेवटे तप आदिथी शरीर अति कृश थयुं जाणी संलेखनापूर्वक अनशन स्वीकारवानी प्रभुनी आज्ञा प्राप्त करी वैभारगिरि पर्वत पर स्थविर मुनिओ साथै जई शुद्धशिलातल पर बेसी, चारे आहारनां पञ्चकखाण करी, अढारे पापस्थानको ने आलोची, शुद्ध वैराग्यना वधता भावपूर्वक क्षमापना अने सुकृतनी अनुमोदना करी, एक महिना सुधी अनशन करी, विशुद्ध भावे कालधर्म पामी पांचमा अनुत्तर विमानमां विजय नामना विमानमा तेत्रीससागरोपमनी स्थितिना देवपणे मेघकुमारमुनि उत्पन्न थया. त्यांथी च्यवीने महाविदेहक्षेत्रमां मनुष्यपणे जन्मी संयम प्राप्त करी मोक्षे जशे. । उपसंहार । पोताना आत्माने संयममांथी चलविचल थता परिणामोथी बचाववा आदर्श--नमूनेदार उदाहरणरूपे आ मेघकुमारनं अध्ययन ज्ञातासूत्रमां प्रथम जणावेल छे. आमां मेघकुमारना पूर्वभवमां हाथीए जीवदया खातर पग ऊंचो राख्यो तेमां मनुष्य आयुष्य बांध्युं, अने जीवदयानुं उत्कृष्ट पुण्य बंधार्युं तेथी मुख्यताए आ अध्ययननुं मुख्य नाम उत्क्षिप्त अध्ययन छे. आ रीतिए प्रथम उत्क्षिप्त नामना अध्ययननो सारांश समाप्त थाय छे. परि० ५ प्रथम उत्क्षिप्त अध्ययन सारांशः । ॥ ३१ ॥
SR No.600322
Book TitleGnata Dharmkathangam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagarsuri
PublisherSiddhchakra Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1951
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size32 MB
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