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परिशिष्ट-५ .. श्रीशलेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ।
॥ प्रथम-श्रीउत्क्षिप्त(मेघकुमार)-अध्ययन-सारांशः॥
कथाप्रारम्भ-दोहदवर्णन-मेघकुमारविवाह
जम्बूद्वीपना दक्षिणार्द्धभरतमा राजगृही नामनी नगरीमां श्रेणिकमहाराजा राज्य करता हता, अने तेओने धारिणी वगेरे राणीओ हती. अभयकुमार नामनो पुत्र, सकलबुद्धिनिधान बधा मंत्रीओ विषे मुख्य हतो. एकदा सुन्दर वासगृहमा पलंग विषे पोढेली धारिणी राणीए अर्धजागृत-अवस्थामां मध्य रात्रिए पोताना मुखमा अवतरता भव्य, सुन्दर, लक्षणोपेत हाथीनुं स्वप्न जोयु, अने जागृत थई. आनन्दथी पूर्ण हृदये श्रेणिक महाराजानी पासे गई, अने जय-विजय-सूचक वाणीथी वधावी जागृत कर्या, अने स्वप्ननी बात कही. आ स्वमनी वात सांभळी हर्षान्वित थयेला राजाए स्वक्षयोपशम अनुसार प्राप्त थयेल बुद्धिना आधारे सम्यग् ऊहापोहपूर्वक तेनो विचार करी धारिणी राणीने जोयेला स्वप्ननुं अभिनन्दन आपवापूर्वक--कल्याण--मङ्गल-दीर्घायु अने आरोग्यादि विशिष्ट फलो सूचववा साथे अपूर्व भाग्यशाली पुत्ररत्ननी प्राप्ति जणावी. आ सांभली वधु आनन्दित बनेल धारिणीदेवीए शकुननी गांठ वाळी, अने शेष रात्रि निद्राथी प्राप्त थयेल महास्वप्ननो विघात न थाय ते हेतुथी धर्मकथा आदि द्वाराए पूर्ण करी. सवारे राजाए व्यायामशालामा अंग-श्रम करी, तैलादिथी विशिष्ट प्रकारनी मालीश आदि करावी स्नान करी अंगभूषा करी, प्रधानआप्तजनोना परिवार साथे विशेष प्रकारे